Swami Dayanand Jivan Gatha (स्वामी दयानन्द जीवन गाथा)
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Author | Dr. Bhavani Lal Bharatiya |
Publisher | Vishwvidyalay Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2nd edition, 2024 |
ISBN | 978-93-87643-89-5 |
Pages | 169 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0138 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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स्वामी दयानन्द जीवन गाथा (Swami Dayanand Jivan Gatha) स्वामी दयानन्द सरस्वती ऋषि थे, आप्त पुरुष, यथार्थ वक्ता थे। सन् १८२४ टंकारा (सौराष्ट्र) में जन्म हुआ, और १८८३ में अजमेर में देहावसान हुआ। कुल ५९ वर्षों का जीवन मिला था। फिर भी, १९वीं शती के महान् से भी महान् व्यक्तित्व से सम्पन्न स्वामी दयानन्द का कृतित्व बहुआयामी था। उनके कार्यों को सोचकर आश्चर्य होता है कि एक संसारत्यागी संन्यासी ने इतना कुछ किया कैसे ?
स्वामी जी का सार्वजनिक जीवन १८६३ ई० से आरम्भ होता है और १८६७ के कुम्भ मेले में हरिद्वार में ‘पाखण्ड खण्डन’ की पताका फहराने वाले ४३ वर्षीय दिगम्बर संन्यासी ने संसार के पाखण्डों के विरुद्ध अकेले मोर्चा लगा दिया। बड़े-बड़े संन्यासी, विद्वान् इस युवक संन्यासी के तर्कों के सम्मुख निरुत्तर हो रहे थे। इतनी बड़ी संख्या में, ऐसा उग्र विद्रोह, जल्दी देखने-सुनने में नहीं आता। अकेले एकमात्र कौपीनधारी संन्यासी के विरुद्ध लाखों पण्डित संन्यासी धर्माचार्य, करोड़ों जनता, उनमें असंख्य गुण्डे-बदमाशों का दल था। किन्तु सत्य पर आरूढ़ एक संन्यासी, सारे संसार के पाखण्डों के विरुद्ध, सारे मतमतान्तरों के विरुद्ध, सरकार की सहायता बिना, एकाकी उठकर खड़ा हो गया। यह एक अद्भुत घटना हो गयी।
एक और अपूर्व घटना घटी १८६९ ई० में जब काशी में अकेले संन्यासी ने काशी की सम्पूर्ण विद्वन्मण्डली को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया। काशी की विद्वन्मण्डली के शीर्षस्थ विद्वान् मूर्ति पूजा को वेद प्रतिपादित प्रमाणित न कर सके। सम्पूर्ण भारतवर्ष में यह चर्चा होने लगी कि स्वामी दयानन्द ने सम्पूर्ण पण्डित समुदाय को पराजित कर दिया।
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