Tattva Anubhuti (तत्वानुभूति)
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Author | Gopinath Kaviraj |
Publisher | Vishvidyalaya Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2011 |
ISBN | 978-81-7124-815-5 |
Pages | 160 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0119 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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तत्वानुभूति (Tattva Anubhuti) प्रातःस्मरणीय महामहोपाध्याय डॉ० पं० गोपीनाथ कविराजजी की साधनोज्वल प्रज्ञा में जिस तत्त्वानुभूति का प्रतिफलन हुआ था, यह उसी का संकलन है। तत्त्व से यहाँ षट्त्रिंश तत्त्व किंवा पंचतत्त्वादि का तात्पर्यार्थ नहीं है। यहाँ तत्त्व का अर्थ प्राणब्रह्म, आत्मब्रह्म, परब्रह्मरूप सत्ता है, जो तत्त्वातीत होकर भी सर्वतत्त्वमय है। इनका तत्त्वातीत रूप मन-वाणी-अनुभूति, सबसे परे है। जीवदशा में इनके इस रूप की अनुभूति कर सकना भी असम्भव है, यहाँ तक की इनकी धारणा भी इस देहयन्त्र से कोई कैसे कर सकता है? तथापि महापुरुष के अन्तःचक्षु इनके तत्त्वमय स्वरूप की अनुभूति कर ही लेते हैं, यही है परमतत्त्व की अनुग्रहरूप कृपा। स्वप्रयत्न से कोई भी इस तत्त्वानुभूति का अधिकारी नहीं हो सकता। यह कृपा-सापेक्ष है।
यह अनुग्रहानुभूति सामान्य जन के लिए दुष्प्राप्य है। इस अनुभूति प्रभा को धारण करने योग्य जिस चित्तफलक की आवश्यकता है, वह पाकर भी मनुष्य उस पर संश्लिष्ट कल्मष का मार्जन नहीं कर सका है। ऐसी स्थिति में महापुरुष की तत्त्वानुभूतिपूर्ण वाड्मयी त्रिपथगा में, ज्ञान-भक्ति-कर्म की अन्तःसलिला में निमज्जन करके जिज्ञासुवर्ग अवश्य कृतार्थ होगा और उसके इस स्नान से स्वच्छ- धौत-निष्कल्मष चित्तफलक पर किंचित् परिमाण में वह अनुभूति अवश्य प्रतिच्छवित हो सकेगी, यह विश्वास करता हूँ।
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