Tattvarth Ramayan (तत्त्वार्थ रामायण) Code-97
₹400.00
Author | Shri Ramchandra Dongreji |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2009 |
ISBN | 097-542-2392548 |
Pages | 696 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0121 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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तत्त्वार्थ रामायण (Tattvarth Ramayan) इस कलिकाल में अथाह संसार-सागर से पार उत्तरने के लिए भगवन्नाम ही नौका-स्वरूप है। उसके अतिरिक्त और कोई साधन नहीं है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है-
भवसागर चह पार जो पावा।
रामचरन ता कहें दृढ़ नावा।।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना।
एक अधार राम गुन गाना ।।
इसी सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए इस ग्रन्थ में परमात्मा राम के दिव्य सगुणों का चिंतन एवं मनन किया गया है। इसमें पूज्य श्रीडोंगरेजी महाराज द्वारा रामायण के प्रत्येक शब्द का सभी दृष्टियों से विवेचन किया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ गुजराती भाषा से हिन्दी भाषा में अनूदित है। हिन्दी-भाषियों की रुचि एवं राष्ट्र-भाषा के उत्थान के निमित्त किया गया यह प्रयास अत्यन्त श्लाघ्य है। ग्रंथ में उल्लिखित “मुक्ति के सात सोपान” के अन्तर्गत रामायण के सातों काण्डों का तात्त्विक दृष्टि से कुशलतापूर्वक सूक्ष्म निरूपण किया गया है, जो कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए ग्राह्य है। इस ग्रंथ की भाषा अतीव सरल एवं सुबोध होने के फलस्वरूप अल्प शिक्षित लोगों के लिए भी यह परम उपयोगी है। सर्वसाधारण लोग भी इसके पठन-पाठन से अपने आचरण को सुधारकर अपने अमूल्य जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
आधुनिक युग के जन-मानस से धार्मिक भावनाएँ प्रायः लुप्त-सी होती जा रही है, सर्वत्र भ्रष्टाचार का साम्राज्य छाया हुआ दिखाई दे रहा है, ऐसे समय में इस ग्रंथ का प्रकाशन सन्मार्ग की ओर अग्रसर कराने में सहायक सिद्ध होगा। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी जीव को भगवन्नाम की ओर उन्मुख करता है, वही सच्चा वैष्णव कहलाने का अधिकारी है। सचमुच ही इस ग्रंथ के प्रवक्ता द्वारा समूचे राष्ट्र एवं विश्व-कल्याण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इसके अध्ययन से अन्तःकरण की शुद्धि होकर धार्मिक प्रवृत्तियाँ जाग्रत् होंगी, जिसके फलस्वरूप पाठक के हृदयाकाश में ज्ञानरश्मियाँ बिखरने लगेंगी।
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