Tulsi Vivah Paddhati (तुलसी विवाह पध्दति) – 101
₹35.00
Author | Shree Shiva Jeet Singh |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2011 |
ISBN | 101-542-2392540 |
Pages | 40 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0181 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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तुलसी विवाह पध्दति (Tulsi Vivah Paddhati) परब्रह्म परमात्मा सृष्टि के अवसर पर स्वयं दो रूपों- प्रकृति और पुरुष के रूप में प्रकट हो जाते हैं। उनका आधा दाहिना अंग ‘पुरुष’ और आधा बायाँ अंग ‘प्रकृत्ति’ होता है। वहीं प्रकृति ब्रह्मस्वरूपा, नित्या और सनातनी माया है। जैसे परमात्मा हैं, वैसी उनकी शक्तिस्वरूपा प्रकृति है अर्थात् परब्रह्म परमात्मा के सभी अनुरूप गुण इन प्रकृति में निहित है। भगवती प्रकृति भक्तों के अनुरोध से अथवा उन पर कृपा करने के लिये विविध रूप धारण करती हैं। श्री ‘तुलसी’ को प्रकृति देवी का प्रधान अंश माना जाता है। ये विष्णुप्रिया है। विष्णु को विभूषित किये रहना इनका स्वाभाविक गुण है। भगवान् विष्णु के चरणों में ये सदा विराजमान रहती हैं। तपस्या, संकल्प और पूजा आदि सभी शुभकर्म इन्हीं से शीघ्र सम्पन्न होते हैं।
पुष्यों में ये मुख्य मानी जाती हैं। ये परमपवित्र तथा सदा पुण्यप्रदा है। अपने दर्शन और स्पर्शमात्र से ये तुरन्त मनुष्यों को परमधाम का अधिकारी बना देती हैं। पापरूपों सूखी लकड़ी को जलाने के लिये ये प्रज्वलित अग्नि के समान रूप धारण करके ये कलियुग में पधारी हैं। इन देवी तुलसी के चरण कमल का स्पर्श होते ही पृथ्वी परम पावन बन गयी, तीर्थ स्वयं पवित्र होने के लिये इनका दर्शन एवं स्पर्श चाहते हैं। भारतवर्ष में वृक्षरूप से पधारनेवाली ये देवी कल्पवृक्षस्वरूपा हैं। भारतवासियों का त्राण (उद्धार एवं रक्षा) करने के लिये इनका वहाँ पधारना हुआ है। ये पूजनीयों में परम देवता हैं।
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