Annapurna Vrat Katha (अन्नपूर्णा व्रत कथा) – 382
₹35.00
Author | Acharya Pt. Shivdatt Mishr |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2013 |
ISBN | 382-542-2392543 |
Pages | 64 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0180 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
अन्नपूर्णा व्रत कथा (Annapurna Vrat Katha) वर्तमान सृष्टि के सत्ययुग के चतुर्थ चरण के पश्चात् प्रथम त्रेता युग के प्रारम्भ के प्रायः दो अरब वर्ष से भारतीय महर्षियों द्वारा उपदिष्ट धर्म, संस्कृति और सभ्यता के परिचायक व्रत, कथा, स्तोत्र पाठ आदि की परम्परा निरन्तर चली आ रही है। सृष्टि के प्रत्येक जीव दुःख की निवृत्ति और सुख की प्राप्ति की अभिलाषा करते हैं, जिनमें पुण्यतम मानव अपनी सुख-समृद्धि तथा रोग-शोक कष्ट की निवृत्ति एवं मनःशान्ति के लिए अपने किसी-न-किसी उपास्य देवी-देवता के व्रत, कथा, पूजा-पाठ और मान-मनौतियाँ करता आ रहा है। अन्नपूर्णा-व्रत-कथा भी उसी का एक अंग है, जिसके व्रत-अनुष्ठान एवं कथा-श्रवण से, धन-धान्य, लक्ष्मी तथा सन्तान सुख की प्राप्ति तो होती ही है, मनुष्य को (लप्स्यते नाऽन्न-दुःखानि) अन्नकष्ट नहीं सहन करना पड़ता, यह ध्रुव सत्य है।
स्मरणीय है कि वनवास-काल में अपने भाइयों के साथ महाराज युधिष्ठिर तथा भगवान रामचन्द्र को भी वन में महान् कष्ट सहन करने पड़े थे किन्तु श्रद्धा-भक्ति से यही अन्नपूर्णा व्रत करने से गयी हुई राज्यलक्ष्मी उन्हें पुनः प्राप्त हुई थी। इसी तरह धनंजय नामक ब्राह्मण को इस व्रत के करने से माता अन्नपूर्णा प्रसन्न हुईं और काशीपुरी में आकर उसने विश्व का कल्याण किया। भविष्योत्तर पुराण से एक-सौ उनहत्तर श्लोक पृथक् करके ‘अन्नपूर्णा-व्रत कथा’ नाम से यह पुस्तक प्रकाशित की गयी है। मूल पाठ की शुद्धता एवं आधुनिक शैली से संशोधन-सम्पादन तथा परिमार्जित हिन्दी टीका के साथ अब तक यह पुस्तक अन्यत्र कहीं से नहीं प्रकाशित थी। यदि इस पुस्तक से माता अन्नपूर्णा के भक्तों का कुछ भी उपकार हुआ तो लेखक अपना परिश्रम सार्थक समझेगा।
Reviews
There are no reviews yet.