Vangsen (वङ्गसेन)
₹900.00
Author | Sri Shaligram Ji Vaisya |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 1016 |
Cover | Hard Cover |
Size | 17 x 4 x 24 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0052 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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CompareDescription
वङ्गसेन (Vangsen) जब हिन्दुसौभाग्यका निष्कलङ्क मयङ्क अस्ताचडमें अस्तङ्कवाद, जबसे मारतउक्ष्मी अन्तर्हिता हुई है, जबसे आर्य्यभूमिमें वारंवार पवन लोगोंका पदार्पण हुबाहै, जबसे राजनीति, समाजनीति और धम्र्मनीतिमें विशेष विप्लव (गोल माड) हुवाहै, तबसे आये ऋषिपोक्त सम्पूर्ण हिन्दुशास्त्र मायः सुत्र होगये और उन्हींक साथ भारतका महार्परत्न और समस्त पृथ्वीका गौरवस्वरुप हमारा आयुर्वेद शा खभी अतिशय शोचनीय अवस्थाको प्राप्त होगया।
हिन्दुराजानेंकि समय समस्तशास्त्रोंकी चर्चा पी, विद्याकी उज्ज्वळ आना, भारतवर्षको प्रकाशित करती थी, उससमय हमारा आयुर्वेदशास्त्र सम्पूर्ण चिकित्साशास्त्रोंकी अपेक्षा श्रेष्ठ बौर भारतसन्तानकी स्वास्थ्यरक्षाका एकमात्र अवलम्ब समझानाताया. जायुर्वेदीय चिकित्सा सम्पूर्णाच।कित्साओंकी मूड और भारतसन्तानकी माताको समान हितकारिर्णी मातृचिकित्सा समझीनातीभी, पूर्वकाडमें हमारे पूर्वपुरुष आयुर्वेदीय चिकित्साके मभावसे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यठान करके धम्र्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन पुरुषार्थचतुष्टयका साधन करते थे, तभा दॉपंफाळतक मुखपूर्वक संसारयात्राको व्यतीत करते थे। आयुर्वेदीय नियमानुसार चलनेसे कदापि रोगसंकट उपस्थित नहीं होतापा तथा एकबार रोगळे मुच्होनेपर फिर भारत सन्तानको कभी भी रोगकी भीषणमूर्तिक दर्शन नहीं करने पड़तेथे, आयुर्वेदीय पूर्ण चिकित्सा होनेके कारण भारतसन्तानको कभी किसी विदेशीय चिकित्साका आश्रय नहीं लेना पड़ताया। केवल आयुर्वेदीय क्रमानुसार चढ़नेसे सर्वमकारकी आधि व्याधि क्षणभरमें शांत होनाती रा. क्योंकि विधिपूर्वक प्रयोग कियेहुए आयुर्वेदोक्त सामान्य तृणगुल्मादि द्रव्यनी अनन्तगुण और अ मोपशक्तिसम्पन्न होनेके कारण बड़े २ नीर्ण, नटिड और दुस्तररोगोंको सहनमें दूर करदेतेथे। हमारे देशमें उत्पवहुई औषधि हमारी मकृतिके अनुकूल होनेके कारण महात्मा महर्षिगणेनि ठीक हमारे डिपेही आयुर्वेदशास्त्रकी रचना कीथी।
आयुर्वेदशाख केवळ भारतवर्षमें ही सर्वोत्कृष्ट चिकित्साशास्त्र है ऐसा ही नहीं बल्कि कभी समस्त-पृथ्वीभरके चिकित्साशास्त्रोंमें आयुर्वेदशास्त्रने अत्युच आसन ग्रहण किया था। जिस समय अरब और मिसर देश माचीनताके अभिमानमें चूर्णितये, जब पुराने रोम और ग्रीस देश सभ्यताफी शेखीमें निमत्र थे, जिस समय सम्पाशिरोमणि पृथ्वी का आभूषणरूप यूरूप देश असन्यताके घोर अन्धकारसे आच्छादितमा, तबसेही हमारा आयुर्वेदशास्त्र सम्पूर्ण चिकित्साशास्त्रोंमें माचीन और सर्वोत्कृष्ट समाझा जाता हैं। आयुर्वेदकी प्रचीनता और उत्कृष्टताके विषयमें कतिपय विदेशीय विद्धानेंकि प्रमाण लिखते हैं। अबसे अनुमान तेरहस। वर्ष पहले भुवनविमयी ग्रीक देशाधिपति महावीर एडेकनेंडर अपने देशके असाध्य रोगोंको नष्टकरनेके किये भारतवर्षीय वैद्योंको सदैव बड़े यत्ल और सत्कार के साथ अपने यहां रखता था।
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