Vivah Sanskar Paddhati (विवाह संस्कार पद्धति)
₹25.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 7th edition |
ISBN | - |
Pages | 128 |
Cover | Paper Back |
Size | 20 x 1 x 14 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0059 |
Other | Code - 2191 |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
विवाह संस्कार पद्धति (Vivah Sanskar Paddhati) भारतीय सनातन संस्कृतिमें संस्कारोंको सम्पन्न करने तथा उनकी विधियोंके अनुपालनकी विशेष महिमा है। संस्कार शब्दका सामान्य अर्थ है- विमलीकरण अथवा विशुद्धीकरण। जिस प्रकार किसी मलिन वस्तुको धो-पोंछकर शुद्ध-पवित्र बना लिया जाता है अथवा जैसे सुवर्णको आगमें तपाकर उसके मलोंको दूर किया जाता है, वैसे ही संस्कारोंके द्वारा जीवके जन्म-जन्मान्तरोंसे सम्बन्धित मलरूप कर्म-संस्कारोंका भी दूरीकरण किया जाता है। किसी दर्पणपर पड़ी हुई धूल आदि सामान्य मलको वस्त्र आदिसे पोंछना, हटाना या स्वच्छ करना मलापनयन अथवा दोषापनयन कहलाता है। फिर किसी रंग या तेजोमय पदार्थद्वारा उस दर्पणको विशेष चमत्कृत या प्रकाशमय बनाना गुणाधान या अतिशयाधान कहलाता है। इस प्रकार संस्कारमें मुख्यतः दो प्रकारकी क्रियाएँ होती हैं- एक है दोषापनयन तथा दूसरा है गुणाधान। संस्कार, संस्कृति और धर्मद्वारा मानवमें मानवता आती है, संस्कारोंसे मलिन अन्तःकरण विशुद्ध हो जाता है, यही कारण है कि सनातन धर्ममें गर्भमें आनेसे लेकर मृत्युपर्यन्त संस्कार किये जाते हैं। संस्कारोंसे शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि एवं निर्मलता तथा शास्त्रीय कर्मोंको करनेकी योग्यता प्राप्त होती है। इन संस्कारोंका प्रभाव विशेष रूपसे अन्तःकरणपर पड़ता है।
शास्त्रोंमें सोलह से लेकर अड़तालीसतक संस्कार बताये गये हैं, उनमें सोलह संस्कारोंकी विशेष प्रतिष्ठा है। व्यासस्मृतिमें इन सोलह संस्कारोंका इस प्रकार परिगणन किया गया है- (१) गर्भाधान, (२) पुंसवन, (३) सीमन्तोन्नयन, (४) जातकर्म, (५) नामकरण, (६) निष्क्रमण, (७) अन्नप्राशन, (८) वपनक्रिया (चूडाकरण), (९) कर्णवेध, (१०) उपनयन (व्रतादेश), (११) वेदारम्भ, (१२) केशान्त, (१३) समावर्तन, (१४) विवाह, (१५) विवाहाग्निपरिग्रह तथा (१६) त्रेताग्निसंग्रह। कुछ आचार्योंके मतमें अन्त्येष्टि कर्मको सोलहवें संस्कारके रूपमें परिगणित किया गया है।
षोडश संस्कारोंमें विवाह संस्कार का विशेष महत्त्व है। समावर्तन संस्कार होनेपर गृहस्थाश्रममें प्रवेश करनेके लिये तथा गृहस्थ धर्म का निर्वाह करनेके लिये विवाह संस्कार सम्पन्न होता है। यह गृहस्थाश्रम सभी आश्रमोंका उपकारक है और गृहस्थधर्मका निर्वाह विवाह संस्कार के अनन्तर ही शक्य है।
विवाह वर-वधूके मध्य एक पवित्र और आध्यात्मिक सम्बन्ध है, जो अग्नि एवं देवताओंके साक्ष्यमें वेदमन्त्रोंके द्वारा सम्पादित होता है। स्थूल दृष्टिसे एक लौकिक उत्सव दिखायी देनेवाला यह संस्कार जीवनमें सभी प्रकारकी मर्यादाओंकी स्थापना करनेवाला है। यह संस्कार संयमित ब्रह्मचर्य, सदाचार, देवपूजा, अतिथिसत्कार तथा प्राणिमात्रकी सेवा करते हुए व्यक्तिके उत्थानमें सहज साधनके रूपमें प्रतिष्ठित है। विवाहका मूल उद्देश्य है लौकिक आसक्तिका तिरोभावकर एक अलौकिक अनुरागके आनन्दको प्रदान करना और पुरुष एवं स्त्रीके अमर्यादित कामोपभोगको नियन्त्रित करना। पति और पत्नी दोनों विवाहके बाद पूर्णताको प्राप्त करते हैं। पातिव्रत-धर्म विवाहविधानकी पवित्र देन है। भारतीय विवाह-प्रक्रिया स्त्री-पुरुषको एक अविच्छिन्न सम्बन्ध प्रदान करती है और यह पवित्र बन्धन उनके पूर्वजन्मका और भावीजन्मका भी अभिन्न सम्बन्ध निश्चित करता है।
Reviews
There are no reviews yet.