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Bhoot Damar Tantra (भूत डामर तन्त्र)

170.00

Author Krishan Kumar Rai
Publisher Prachya Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2008
ISBN -
Pages 109
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0147
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Description

भूत डामर तन्त्र (Bhoot Damar Tantra) मन्त्रशास्त्र भारतीय विद्याओं की एक अनुपम निधि है। सर्वभूतेश्वर देवाधिदेवमहादेव इसकी प्रेरणा के मूल श्रोत हैं। कलियुग में समस्त प्राणियों के अल्प ज्ञान एवं सामर्थ्य का उन्हें पूर्वाभास था। अतः कम परिश्रम से ही भक्तों की कार्य-सिद्धि के लिए उन्होंने तन्त्रशास्त्र का उपदेश दिया। इसी कारणवश तन्त्रशास्त्र की महिमा का सर्वत्र उल्लेख मिलता है। जब कालचक्र के प्रभाव से यह शास्त्र लगभग लुप्त सा हो गया तब महर्षियों, सिद्ध योगियों एवं महात्माओं ने तपोबल द्वारा मन्त्रों तथा यन्त्रों को अर्जित करके उसमें दैवी शक्तियों को स्थापित कर सामान्य-जन के उपकारार्थ उपलब्ध कराया।

भूतडामर तन्त्र प्रथम बार नागरीलिपि में भाषा अनुवाद सहित प्रस्तुत किया जा रहा है। भूतडामर तन्त्र में पाठों का क्रम इस प्रकार है : सम्पूर्ण ग्रन्थ सोलह पटलों में है। प्रथम पटल उन्मत्त भैरवी एवं उन्मत भैरव के सम्वाद के रूप में आरम्भ होता है जिसमें यक्ष, मनुष्य, भुजग, किन्नर, प्रथम, नापिकादि के सिद्धि लाभ तथा रक्षा के प्रकरण मिलते हैं। द्वितीय पटल में समस्त देवताओं एवं भूतादिगणों के मारण का विस्तृत उल्लेख है। तृतीय पटल में सुन्दरी साधना, चतुर्थ पटल में पिशाचिनी चेटिका साधना, पंचम पटल में अष्टकात्यायनी साधना, षष्ठ पटल में प्रथमाधिपक्रोधराज साधना, सप्तम पटल में कैङ्करी साधना, अष्टम पटल में चेटिका साधना, नवम पटल में भूतिनी साधना, दशम पटल में अप्सरा साधना, एकादश पटल में यक्षिणी साधना, द्वादश पटल में अष्टनागिनी सिद्धि साधना, त्रयोदश पटल में किन्नरी सिद्धि साधना, चतुर्थदश पटल में परिषन्मण्डल क्रोध ध्यान विधि, पंचमदश पटल में अपराजितादिमुख यक्षसिद्धि साधना तथा षोडश पटल में योगिनी साधना के सन्दर्भ में क्रमशः विस्तृत विधियों का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार भूतडामर तन्त्र समाप्त होता है। इसमें उल्लिखित सभी पद्धतियिाँ सरल तथा रचनात्मक हैं। इनके प्रयोग सम्भव तथा मानव मात्र के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकते है, यह निर्णय सुधी पाठकों पर निर्भर करता है।

इस भूतडामर तन्त्र के अतिरिक्त एक भूतडामर तन्त्र की पाण्डुलिपि और प्राप्त हुई है। उसके विषय वस्तु इससे बिलकुल भिन्न हैं। पुस्तक का प्रकाशन मूलरूप में ही प्रकाशित हो चुका है। सम्पूर्ण पुस्तक शिव और रावण सम्वाद पर आधारित है। यह भूतडामर तन्त्र प्रथम उल्लास से अट्ठाईस उल्लास तक है।

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