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Pret Manjari (प्रेत मंजरी)

100.00

Author Pt. Agninarayan Mishra
Publisher Shri Vishnu Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 164
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SVP0020
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Description

प्रेत मंजरी (Pret Manjari) ‘श्रद्धया यद् दीयते तच्छ्राद्धम्’ अर्थात् मृत पितरों के निमित्त पुत्रादि-द्वारा श्रद्धापूर्वक समन्त्रक दिया जाने वाला पदार्थ श्राद्ध कहा जाता है।
मनुष्य के ऊपर देवता, पितरों एवं ऋषियों का ऋण रहता है। क्योंकि, पितृ-प्रदत्त यह शरीर है। मनु ने कहा है- ‘ज्येष्ठेन जातमात्रेण पुत्री भवति मानवः। पितृणामानृण्यमाप्नोति…’ अर्थात् ज्येष्ठ पुत्र के उत्पन्न होते ही पिता पितृऋण से मुक्त हो जाता है। पुत्र उत्पन्न और पिण्डदान करने से मनुष्य पितृऋण से मुक्त हो जाता है।

‘अपत्य’ शब्द का अर्थ है, ‘न पतन्ति पितरो येन तदपत्यम्।’ ‘पुंल्लोकात् त्रायते’ इति पुत्रः। ‘अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्ग नैव च नैव च।’ ‘उत्पादयितव्या बहवः पुत्राः यद्येकोऽपि गयां ब्रजेत् ।।’ इत्यादि शास्त्रीय वचनों से सिद्ध है कि, पुत्र को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। अतः जो पुत्र अपने पिता का श्राद्ध नहीं करता उस पर पितृ ऋण बना रहता है एवं उसके कुल में वीर, स्वस्थ तथा सच्चरित्र सन्तानें नहीं होती।

उसी श्राद्ध को स-विधि सम्पन्न कराने के लिए ही प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित की गयी है, जो आपके समक्ष प्रस्तुत है। यद्यपि श्राद्ध की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं, उसी परम्परा में यह पुस्तक भी है, जो कर्मकाण्डियों एवं पौरोहित्य कार्य करानेवाले विद्वानों की सभी असुविधाओं को ध्यान में रखकर ही विद्वद्वरेण्य पण्डित श्री अग्निनारायण मिश्रा ने प्रस्तुत प्रेत-मञ्जरी लिखी है। इसमें मूल पाठ की शुद्धता और सरल सुबोध हिन्दी टीका सहित श्राद्ध-सम्बन्धी सभी विषय दिये गये हैं। आशा है, यह पुस्तक सर्व-साधारण विद्वानों के लिए भी कार्य कराने में विशेष उपयोगी एवं सुविधाप्रद सिद्ध होगी।

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