Sachitra Aarti Sangrah (सचित्र आरती संग्रह)
₹20.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Hindi |
Edition | 39th edition |
ISBN | - |
Pages | 35 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0056 |
Other | Code - 1344 |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
सचित्र आरती संग्रह (Sachitra Aarti Sangrah) आरती पूजन के अन्त में इष्ट देवता की प्रसन्नता के हेतु को जाती है। इसमें इष्ट देव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है।
आरती में पहले मूल मन्त्र (जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो, उस मन्त्र) के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों तथा जय-जय कार के शब्द के साथ शुभ पात्र में घृत से या कपूर से विषम संख्याकी बत्तियाँ जलाकर आरती करनी चाहिये।
साधारणतः पाँच बत्तियों से आरती की जाती है, इसे ‘पंचप्रदीप’ भी कहते हैं। एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। कपूर से भी आरती होती है। पद्मपुराण में आया है- कुंकुम, अगर, कपूर, घृत और चन्दनकी सात या पाँच बत्तियाँ बनाकर अथवा रूई और घी की बत्तियाँ बनाकर शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिये।
आरतीके पाँच अंग होते हैं-
प्रथम दीप माला के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हुए वस्त्र से, चौथे आम और पीपल आदि के पत्तोंसे और पाँचवें साष्टांग दण्डवत्से आरती करें।
आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान्की प्रतिमा के चरणों में चार बार, नाभि देश में दो बार, मुख मण्डल पर एक बार और समस्त अंगों पर सात बार घुमाये।
आरती के दो भाव हैं जो क्रमशः ‘नीरा जन’ और ‘आरती’ शब्द से व्यक्त हुए हैं। नीरा जन (निःशेषेण राजनं प्रकाशनम् )- का अर्थ है-विशेष रूप से, निःशेष रूप से प्रकाशित करना। अनेक दीप-बत्तियाँ जलाकर विग्रह के चारों ओर घुमाने का अभिप्राय यही है कि पूरा का पूरा विग्रह एड़ी से चोटी तक प्रकाशित हो उठे-चमक उठे, अंग-प्रत्यंग स्पष्ट रूप से उद्भासित हो जाय, जिसमें दर्शक या उपासक भलीभाँति देवता की रूप-छटा को निहार सके, हृदयंगम कर सके।
दूसरा ‘आरती’ शब्द (जो संस्कृत के आर्तिका प्राकृत रूप है और जिसका अर्थ है- अरिष्ट) विशेषतः माधुर्य- उपासना से सम्बन्धित है।
भगवान्के पूजन के अन्त में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति हो जाती है। शास्त्रों में आरती का विशेष महत्त्व बताया गया है। पूजन में यदि मन्त्र और क्रिया में किसी प्रकार को कमी रह जाती है तो भी आरती कर लेने पर उसकी पूर्ति हो जाती है।
आरती करने का ही नहीं, आरती देखने का भी बहुत बड़ा पुण्य है। जो नित्य भगवान्की आरती देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह अपनी करोड़ पीढ़ियों का उद्धार करता है तथा अन्त में भगवान्के परम पद को प्राप्त हो जाता है। अतः अत्यन्त ही श्रद्धा-भक्ति से अपने इष्ट देव की नित्य आरती करनी चाहिये। सचित्र-आरती-संग्रह में १६ आरतियाँ दी गयी है, भगवान की रंगीन चित्र के साथ।
Reviews
There are no reviews yet.