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Tripindi Shraddh Paddhati (त्रिपिण्डी श्राद्ध पद्धति)

102.00

Author Dr. Ramamilan Mishra
Publisher Shree Vedang Sansthan Prayagraj
Language Himdi & Sanskrit
Edition 2023
ISBN 978-81-958056-2-4
Pages 144
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SVS0008
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Description

त्रिपिण्डी श्राद्ध पद्धति (Tripindi Shraddh Paddhati) जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है त्रिपिण्डी अर्थात् तीन पिण्ड प्रदान की जाने वाली क्रिया, त्रिपिण्डी श्राद्ध है। इसमें सात्त्विक, राजस तथा तामस तीन प्रकार की आत्माओं को शान्ति प्राप्त होती है अथवा यह कह सकते हैं कि सात्त्विक, राजस तथा तामस इन तीनों प्रकार के प्रेत इस क्रिया से सन्तुष्ट होते हैं।

जब किसी के घर, स्थान अथवा किसी व्यक्ति को प्रेत बाधा ग्रसित कर रही हो, ऐसी परिस्थिति में त्रिपिण्डी श्राद्ध करने से प्रेत शान्त हो जाते हैं और उस व्यक्ति या स्थान को पीड़ा नहीं देते, दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बाधा करने वाले प्रेत मुक्त हो जाते हैं। जिससे व्यक्ति सुखी हो जाता है।

संसार में लोगों की कई प्रकार से मृत्यु होती है कुछ स्वाभविक मृत्यु से मरते हैं जबकि कुछ लोगों की अकाल मृत्यु होती है। यदि और्ध्वदैहिक क्रियाएं ठीक से सम्पन्न न की गईं तो उस मृत व्यक्ति को प्रेत योनि प्राप्त होती है। प्रेत योनि अत्यन्त अशान्त और वायु स्वरूप रहने वाली योनि है, वह आत्मा अशान्त होकर इधर-उधर आत्म शान्ति के अन्वेषण में भटकती रहती है। कुयोगवशात् उसके सम्मुख यदि कोई व्यक्ति आ गया अथवा किसी स्थान पर उसका ठहराव यदि कुछ क्षण के लिए हुआ, तो वहाँ उसको कुछ शान्ति प्राप्त होती है, फलतः वह बारम्बार उस व्यक्ति अथवा स्थान में आने लगता है जिससे वह व्यक्ति असहज हो जाता है और उसकी विपरीत क्रियाओं से प्रेत बाधा का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में त्रिपिण्डी श्राद्ध सर्वोत्तम क्रिया है जिसको करने से उस प्रेत बाधा से मुक्त हुआ जा सकता है। त्रिपिण्डी श्राद्ध का वैशिष्ट्य है कि अपने परिवार या अन्य परिवार के लोगों की सभी प्रेतात्माएं मुक्त हो जाती हैं जबकि नारायण बलि इत्यादि से कर्ता के परिवार की एक मात्र जिसके लिए किया जाता है वही आत्मा शान्त होती है।

प्रायः सभी लोगों से जाने अनजाने में हिंसा कर्म हो ही जाते हैं अथवा पूर्वजन्म के भी हिंसा कर्म इस जन्म में भी लगे हुए रहते हैं, जिनके परिणाम स्वरूप विषाणु जनित जैविक, भौतिक तथा प्रेतात्मिक इत्यादि कष्ट होते हैं। इन सबके समाधान का एकमात्र उपाय त्रिपिण्डी श्राद्ध ही है। पितृदोष की शान्ति का सबसे प्रबल और सटीक उपाय त्रिपिण्डी श्राद्ध है। अतः किसी को प्रेत बाधा हो अथवा न हो त्रिपिण्डी श्राद्ध सभी को करना चाहिए। कभी जब घर परिवार में अधिक बाधाएं होती हैं तो एक बार में इसकी शान्ति नहीं होती, तब ऐसी स्थिति में तीन, तीन मास के अन्तराल में अथवा छः-छः मास के अन्तराल में अथवा एक वर्ष के अन्तराल में त्रिपिण्डी श्राद्ध की पुनरावृत्ति करने से सम्पूर्ण बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं। जीवन में इस श्राद्ध को कई बार कर सकते हैं इसके करने से लाभ ही है, किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता। जैसे प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष में पितरों का तर्पण श्राद्ध किया जाता है, उसी प्रकार सब कुछ ठीक रहने पर भी प्रति वर्ष त्रिपिण्डी श्राद्ध किया जा सकता है।

प्रस्तुत पुस्तक में क्रमबद्ध रूप से त्रिपिण्डी श्राद्ध सम्पादन की सरलतम् विधि दी गयी है, साथ ही त्रिपिण्डी श्राद्ध में किये जाने वाले सूक्तों, स्तोत्रों को भी दिया गया है जिससे आचार्यों तथा पण्डितों को अन्य किसी ग्रन्थ को रखने की आवश्यकता नहीं होगी, मात्र इस पद्धति से आद्योपान्त क्रिया सम्पन्न की जा सकेगी।

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