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Nathpanth Sadhna Aur Sahitya (नाथपंथ : साधना और साहित्य)

370.00

Author Amita Dubey
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 1st edition, 2008
ISBN 978-81-943764-8-4
Pages 346
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0014
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Description

नाथपंथ साधना और साहित्य (Nathpanth Sadhna Aur Sahitya) आदिनाथ भगवान शिव द्वारा प्रवर्तित नाथ पंथ को कालांतर में महायोगी गुरु गोरखनाथ ने परिवर्द्धित और परिविस्तृत किया। उन्होंने भारतीय समाज और साधना में व्याप्त अनाचार एवं विसंगतियों के उन्मूलन के लिए सफल संकल्प लिया। उनकी दृष्टि समाज और साधना दोनों पर थी क्योंकि उस समय ये दोनों दिग्भ्रम एवं विकृतियों के शिकार हो रहे थे। अतः गुरु गोरखनाथ ने कठोर संयम-नियम का दृढ़ विधान किया। पंचमकारी साधना का निषेध किया और ‘हठयोग’ का वास्तविक तथा तात्त्विक स्वरूप साधकों के समक्ष रखा। उन्होंने बृहत्तर भारत और बाहर की यात्राएँ कीं तथा लोकहित के लिए नाथपंथ के अनेक केन्द्र स्थापित किए।

गुरु गोरखनाथ महान योगी के साथ-साथ क्रांतदशी विचारक और महामनीषी भी थे। संस्कृत तथा अन्य अनेक भाषाओं का उन्हें ज्ञान था। उनकी रचनाएँ व्यक्ति, समाज और साधना का दिग्दर्शन कराने वाली हैं। नाथपंथी साधना और साहित्य का प्रभाव अखिल भारतीय स्तर पर तत्कालीन और परवर्ती पंधों पर व्यापक रूप से पड़ा। हिन्दी, मराठी, गुजराती, उड़िया, बाँग्ला, असमिया, पंजाबी आदि के साहित्य पर नाथपंथ का प्रभाव परिलक्षित होता है। हिन्दी के संत और सूफी साहित्य में बहुत-सी नाथपंथी मान्यताओं का समावेश है। संत कबीरदास ने गुरु गोरखनाथ को कलियुग में अमर माना है तथा उन्हें संयम-साधना के लिए साक्षी कहा है- ‘साखी गोरखनाथ ज्यूँ, अमर भए कलिकाल’ (डॉ. पारसनाथ तिवारी ग्रंथा.) सूफी साहित्य में गोरखनाथ जी गुरु के पर्याय हैं। महाकवि जायसी कहते हैं, गुरु गोरखनाथ से भेंट होने पर (उनके द्वारा निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण करने पर) ही कोई योगी सिद्ध हो सकता है ‘जोगी सिद्ध होइ तब जब गोरख सो भेट।

प्रस्तुत पुस्तक ‘नाथ पंथ : साधना और साहित्य’ में भारत एवं भारतेतर देशों के सम्मान्य मनीषियों ने अपना अमूल्य योगदान किया है, उनके प्रति हम विनयावनत हैं। माननीय योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश के स्नेहाशीष से यह महान सारस्वत यज्ञ पूर्ण हो सका, उनके प्रति हमारा आत्मिक अभिवादन। माननीय डॉ. सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष की व्यापक दृष्टि और अथक प्रयत्न से यह महत्वपूर्ण और उपयोगी ग्रंथ आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है।

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