Shiv Stotra Ratnakar (शिवस्तोत्ररत्नाकर)
₹45.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 256 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0155 |
Other | Code - 1417 |
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शिवस्तोत्ररत्नाकर (Shiv Stotra Ratnakar) श्रुति कहती है-‘सृष्टिके पूर्व न सत् (कारण) था, न असत् (कार्य); केवल एक निर्विकार शिव ही विद्यमान थे।’ अतः ‘जो वस्तु सृष्टिके पूर्व हो, वही जगत्का कारण है और जो जगत्का कारण है, वही ब्रह्म है।’ इससे यह बात सिद्ध होती है कि ‘ब्रह्म’ का ही नाम ‘शिव’ है। ये शिव नित्य और अजन्मा हैं, इनका आदि और अन्त न होनेसे ये अनादि और अनन्त हैं। ये सभी पवित्र करनेवाले पदार्थोंको भी पवित्र करनेवाले हैं। इस प्रकार भगवान् शिव सर्वोपरि परात्पर तत्त्व हैं अर्थात् जिनसे परे और कुछ भी नहीं है- ‘यस्मात् परं नापरमस्ति किञ्चित्।’
भगवान् शंकरके चरित्र बड़े ही उदात्त एवं अनुकम्पापूर्ण हैं। ये ज्ञान, वैराग्य तथा साधुताके परम आदर्श हैं। चन्द्र-सूर्य इनके नेत्र हैं, स्वर्ग सिर है, आकाश नाभि है, दिशाएँ कान हैं। इनके समान न कोई दाता है, न तपस्वी है, न ज्ञानी है, न त्यागी है, न वक्ता है, न उपदेष्टा और न कोई ऐश्वर्यशाली ही है। ये सदा सब वस्तुओंसे परिपूर्ण हैं।
भगवान् शिवके विविध नाम हैं। उनके अनेक रूपोंमें उमामहेश्वर, अर्धनारीश्वर, हरिहर, मृत्युंजय, पंचवक्त्र, एकवक्त्र, पशुपति, कृत्तिवास, दक्षिणामूर्ति, योगीश्वर तथा नटराज आदि रूप बहुत प्रसिद्ध हैं। भगवान् शिवका एक विशिष्ट रूप लिंग- रूप भी है, जिनमें ज्योतिलिंग, स्वयम्भूलिंग, नर्मदेश्वरलिंग और अन्य रत्नादि तथा धात्वादि लिंग एवं पार्थिव आदि लिंग हैं। इन सभी रूपोंकी स्तुति-उपासना तथा कीर्तन भक्तजन बड़ी श्रद्धाके साथ करते हैं।
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