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Artha Sangraha (अर्थसंग्रह:)

190.00

Author Pt. Kamalakant Tripathi
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2022
ISBN 978-93-81189-90-0
Pages 275
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0221
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Description

अर्थसंग्रह: (Artha Sangraha) द्वादशलक्षणी मीमांसा में प्रतिपादित अर्थ अर्थात् न्यायों के परिचयार्थ अर्थसंग्रह ग्रन्थ है, ऐसा नामतः निश्चित होता है। इतना स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ के अनुशीलन के बाद ही भाष्य आदि अन्यों का अनुशीलन सुगम है। एक प्रकार से मीमांसा का परिचय कराने वाला यह ग्रन्थ अतीव महत्त्वपूर्ण है। इसकी रचना आचार्य खण्डदेव के ग्रन्थों से पहले हुई है, क्योंकि परोक्षतः अर्थस‌ङ्ग्रह की चर्चा भाट्टदीपिका की टीका प्रभावली में है। प्रभावलीकार श्रीशम्भुभट्ट आचार्य खण्डदेव के शिष्य हैं। प्रभावली का निर्माण सं. 1754-1762 के आस-पास हुई है ऐसा उनके हस्तलेख से निश्चित होता है। काशी के 1657 खैस्ताब्दीय व्यवस्थापत्र पर खण्डदेव के गुरु विश्वेश्वरगागाभट्ट, खण्डदेव और आपदेव के पुत्र न्यायप्रकाशग्रन्थ के टीकाकार अनन्तदेव के हस्ताक्षर हैं जिससे तीनों का एक काल में होना निश्चित होता है। न्यायप्रकाशकार इनसे पूर्ववर्ती हैं तथा न्यायप्रकाश ग्रन्थ भी भाट्टदीपिका के पहले का है। आचार्य खण्डदेव का काल 1590 ई. से 1665 ई. तक माना जाता है। इसी के आस-पास आपदेव की स्थिति है।

कतिपय विद्वान् आपदेव के मीमांसान्यायप्रकाश का संक्षिप्तीकरण अर्थसंग्रह है, ऐसा मानते हैं। यह अनुचित और शिष्टाचार के विरुद्ध भी लगता है। मीमांसान्यायप्रकाश के शास्वार्थ वाले अंश को हटाकर कतिपय परिवर्तन के बाद स्थापित कर देना बहुत बड़ा कार्य नहीं है। लीगाक्षिभास्कर जैसे विद्वान् ऐसा कार्य क्यों करेंगे? मीमांसान्यायप्रकाश के पहले ही अर्थसंग्रह की रचना संगत लगती है। प्रायः पूर्वार्ध के षडध्यायों का प्रमेय अर्थसंग्रह में है। शेष अध्यायों के पदार्थ प्रसङ्गपतित हैं। अर्थसङ्ग्रह ग्रन्थ को अपने बुद्धिकौशल से आपदेव ने परिवर्धित करके मीमांसान्यायप्रकाश जैसे स्पृहणीय अन्थ की रचना की है। अर्थसङ्ग्रह के अध्ययन के विना न्यायप्रकाश का भी अध्ययन सुगम नहीं है। अस्तु। गौर्वापर्यगवेषण नातीव उपयोगी है। अर्थसंग्रह मीमांसा के आकर ग्रन्थों में प्रवेश के लिए और अन्य शास्त्रों के यथावत् परिज्ञान के लिए अपेक्षित है, अत एव अद्यावधि इसका अध्यापन प्रचलित है।

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