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Ashtavakra Maha Gita (अष्टावक्र महागीता)

340.00

Author Kaka Hariom
Publisher Manoj Publication
Language Hindi
Edition 2023
ISBN 978-81-8133-336-0
Pages 464
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code MP0023
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Description

अष्टावक्र महागीता (Ashtavakra Maha Gita) सत्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन इस सहज स्वीकृति के साथ कि जो कहा जा रहा है, वह अधूरा है अंधों के हाथी की तरह, ऋषियों ने सत्य का प्रतिपादन करने का प्रयास किया। और हार-थक कर बाद में कह दिया – ‘नेति’ ‘नेति’, अर्थात् जैसा कहा जा रहा है, उसे उसी रूप में सच मानने की गलती न करना। क्या सच है? जो दिख रहा है, इन्द्रियों का विषय रूप जगत। यह यदि सच नहीं तो क्या है सच ? मूल रूप से इसी प्रश्न से विकसित होता है यह पावन ग्रंथ-अष्टावक्र और जनक के बीच हुआ संवाद।

श्रीमद्भगवद्‌गीता की तरह इसमें भी गुरु-शिष्य के बीच वार्तालाप है। लेकिन, दोनों के संदर्भों में अंतर है। अर्जुन के प्रश्न ‘कर्तव्य’ को लेकर हैं। वह पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, कर्म-अकर्म में उलझा है। जबकि इस महागीता में प्रश्न तत्त्वज्ञान और मोक्ष को लेकर पूछा गया है। और गुरु ने बिना किसी लाग-लपेट के तत्त्वज्ञान दे दिया है। और आश्चर्य कि जिज्ञासु को दिया गया ज्ञान एकदम अनायास प्रतिफलित हुआ। शिष्य को आत्मसाक्षात्कार हो गया। श्रीमद्भगवद्गीता को सुन अर्जुन अपने कर्तव्य पर तो आरूढ़ हो गया, लेकिन हर्ष-विषाद में चढ़ता-उतराता रहा। जबकि यहां अष्टावक्र के उपदेश को सुनकर जनक विदेह हो गए।

श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि जनकादि की तरह तू भी स्वयं में स्थित होकर सहज कर्म कर। श्रीमद्भगवद्गीता का आदर्श हैं – राजर्षि जनक। और उस जनक और महर्षि अष्टावक्र के बीच हुए आध्यात्मिक संवाद को अपने पृष्ठों पर समेटे है यह पावन ग्रंथ। इसकी इसी गरिमा को सामने रखते हुए हम इसे ‘महागीता‘ कह रहे हैं। कामनाओं की अंधाधुंध दौड़ती आपकी वृत्तियों को कुछ क्षणों के लिए भी इस ‘संहिता’ ने विश्रांति की हल्की-सी भी झलक दिखा दी, तो हम अपने इस प्रयास को सार्थक समझेंगे। ऐसा ही हो, यही हमारी कामना है।

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