Chanakya Niti Darpan Atharta Rajniti Samucchya (चाणक्यनितिदर्पणः अर्थात राजनिति समुच्चयः)
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Author | Pt. Shivdatt Mishr Shastri |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 128 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0728 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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चाणक्यनितिदर्पणः अर्थात राजनिति समुच्चयः (Chanakya Niti Darpan Athartha Rajniti Samucchya) समाज को सुव्यवस्थित, सुत्री, समृद्ध एवं निरुपद्रव करने के उपाय का ही नाम नीति है। तभी तो जयमङ्गला नामक टीका में महामनीषी विद्वान् ने लिखा है-
प्रत्यक्ष-परोक्षा-ऽनुमान-प्रमाणत्रय-निर्णीत-देश-कालानुकूल्ये सति कियानुष्ठानं नीतिः।
उन्हीं पूर्वोक्त विषयों को स्पष्ट एवं उपबृंहित करनेवाले शब्द प्रमाण को नीतिशास्त्र कहा जाता है। उपनिषद् का सारभूत जगन्माम्य श्रीमद्भगवद् कुष्णश्चन्द्र परमपरात्पर परब्रह्म के मुखारविन्द से महामारत में रचित भगवद्गीता का निगमन यानी परम तात्पर्य नीति में ही किया गया है।
यत्र योगेश्वरः कृष्णः यत्र पार्यो धनुर्धरः। तन्त्र श्रीर्विजयो भूतिर्भुवा नीतिर्मतिर्मम।।
पहले के युगों में भले ही अन्य नीतिशास्त्र बने या कार्यान्वित हुए किन्तु कलि में हो ‘चाणक्यनीति’ ही सर्वोपरि माम्ब है। इसी कारण भीतिकुशल पुरुष के लिए लोग कहने लगते हैं कि ये चाणक्य है। उन्हीं पारहश्वा विद्वान् के द्वारा विरचित ‘चाणक्यनीतिर्पण’ ग्रन्य है। इसमें सत्रह अध्याय हैं। वेदान्त शास्त्र के अनुसार सूक्ष्म शरीर में सप्तदश अवयव माने जाते हैं। पच्च प्राण, पञ्च ज्ञानेन्द्रिय, पञ्च कर्मेन्द्रिय, मन और बुद्धि। उसी प्रकार नीतिशास्त्र का परम सूक्ष्म शरीर है – चाणक्यनीति।
इसके श्लोक शीघ्र मन पर अपना प्रभाव स्थापित करते हैं। मुझे यह वाक्य लिखने में भी जितना समय लगा है उससे भी बत्यल्प समय में चाणक्यनीति के इलोकों का प्रभाव मन पर पड़ता ही है। ऐसो मुझे स्पष्ट प्रतीति हुई। कुछ श्लोक पारिभाषिक कूट से भी भरे पड़े हैं जिनका बर्यज्ञान बिना व्याख्या के दुर्लभ है। अतः प्रस्तुत पुस्तक को सरल सुबोध व्याख्या परम आवश्यक है। अनेक ग्रन्थों के लेखक-सम्पादक तथा अनुवादक व्याकरणाचार्य, साहित्य. वारिधि, तन्त्ररत्नाकर आचार्य पण्डित शिवदत्त मिश्र जी ने ‘चाणक्यः नीतिदर्पण’ के श्लोकों की सरल और सुबोध हिन्दी व्याख्या पद्यानुवाद के साथ लिखी है।
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