Samyochit Gadya Malika (समयोचितगद्यमालिका)
₹55.00
Author | Pt. Dwarkaprashad Mishra Shastri |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi |
Edition | 2008 |
ISBN | 978-81-7080-198-2 |
Pages | 107 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0727 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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समयोचितगद्यमालिका (Samyochit Gadya Malika) समाज में, गोष्ठियों में तथा परस्पर वार्तालाप में संस्कृत के वाक्यों, पद्यांशों एवं सुभाषितों के उद्धरण की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। संस्कृत के पण्डित और छात्रगण आपस में संस्कृत भाषा में वार्तालाप करते थे। उनमें सदा शुद्ध और ललित संस्कृत बोलने की होड़ सी रहती थी। यह परम्परा अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। यद्यपि स्वाधीन भारत में संस्कृत के पठन-पाठन की सुविधा पहले से अधिक हुई है। अनेक संस्कृत विश्वविद्यालय और महाविद्यालय स्थापित हुए हैं तथा संस्कृत पाठशालाओं का जाल सा बिछ गया है। कुछ स्वतन्त्र संस्थाएँ भी संस्कृत प्रचार में लगी हुईं हैं किन्तु व्यावहारिक रूप में संस्कृत बोलने और लिखने में पण्डित और छात्र गर्व का अनुभव नहीं करते हैं।
मेरे छात्र जीवन में अध्यापकगण छात्रों को संस्कृत संभाषण के लिए प्रोत्साहित करते थे। ‘वाग्वर्द्धिनी’ सभाएँ स्थापित थीं। ललित संस्कृत बोलने वालों को पुरस्कृत किया जाता था किन्तु अब प्रयोग में यह स्थिति नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे गद्यांशों और पद्यांशों को संस्कृत के आकर ग्रन्थों से चुन कर परस्पर वार्तालाप में उचित समय पर बोलने और लिखने के लिए एकत्र करके अनुवर्ण क्रम से व्यवस्थित किया गया है। मेरी यह दृढ़ धारणा है कि किसी भी भाषा का ज्ञान बोलने और लिखने से जल्दी होता है। अतः इस उद्देश्य से इस दिशा में मैंने यह प्रयास किया है। संस्कृत बोलने में पण्डित और छात्रगण मानक वाक्यों का प्रयोग करें। इदमासनम्, आस्यताम्, के स्थान पर ‘इदमासनम्, सनाथीक्रियताम्’ अधिक ललित और कर्णप्रिय हैं।
अतः ‘सूखा पेड़ सामने खड़ा है’ इसका अनुवाद ‘शुष्को वृक्षः तिष्ठत्यग्रे’ न करके ‘नीरसतरुरिहविलसति पुरतः’ अपेक्षाकृत शोभनतर है। बिना संचित ज्ञान के लिखने और बोलने में संस्कृत के छात्र इस पुस्तक में समाहित संस्कृत वाक्यों और पद्यांशों का अभ्यास करें। बोलने और लिखने में प्रयोग में लायें तो इसी प्रकार के नये मानक वाक्यों की रचना का अभ्यास हो जायगा। तब वे ललित एवं शुद्ध संस्कृत बोलने लगेंगे। निबन्ध लेखन में भी इस पुस्तक से सहायता मिलेगी।यदि इस पुस्तक से संस्कृत के जिज्ञासुओं, पण्डितों और छात्रों को इस दिशा में लाभ हुआ हो मैं अपने परिश्रम को सफल समझेंगा।
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