Dharamsutriya Achar Sanhita (धर्मसूत्रीय आचार संहिता)
₹225.00
Author | Dr. Narendra Kumar |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 1999 |
ISBN | 81-86700196 |
Pages | 215 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0040 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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धर्मसूत्रीय आचार संहिता (Dharamsutriya Achar Sanhita) ऋषि-मुनियों ने धर्म के रहस्य को सरल शब्दों में प्रकट किया है। धर्म पारलौकिक ही नहीं, अपितु इस जीवन का सार है। बिना धर्म के मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। धर्मसूत्रों में ऋषि-मुनियों ने धर्म को सार रूप में समझाया है। उनके अनुसार धर्म जीवन का प्राण तत्त्व है। धर्म से मनुष्य संसार की समस्त विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं। कारण धर्म का सम्बन्ध मनुष्य के अन्तःकरण के साथ-साथ बाह्य भी है।
धर्म हमें जहाँ धार्मिक चर्या का पाठ पढ़ाता है, वहीं वह हमें व्यवहारिक भी बनाता है। दूसरे शब्दों में यदि कोई विद्वान् अपने ज्ञान के अनुसार जीवन-यापन नहीं करता, तो उसका ज्ञान थोथा है। महर्षि वसिष्ठ कहते हैं-‘ज्ञान, बिना आचरणं के अन्धे की दारा के समान है। ज्ञान तभी सार्थक है, जब ज्ञानी सदाचारी हो।’ और यही सदाचार जन-जन में फैल जाए तो धर्म का प्रत्यक्ष लाभ सबको अवश्य मिलेगा ।
प्रथम अध्याय में धर्मसूत्रों के रचनाकाल पर चर्चा है। द्वितीय एवं तृतीय अध्यायों में क्रमशः वर्ण एवं आश्रम पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया है। चतुर्थ अध्याय में संस्कार एवं दाय विभाजन पर सामग्री दी गई है। शिक्षा-व्यवस्था पर पञ्चम अध्याय में चर्चा की है। षष्ठ एवं सप्तम अध्याय में क्रमशः शासन-व्यवस्था और आशौचाचार पर प्रकाश डाला गया है। अष्टम अध्याय में भक्ष्य-अभक्ष्य पर सारगर्भित विवेचना है और नवम अध्याय धर्माचरण में धर्म की विस्तार से चर्चा है।
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