Grah Shanti Paddhati (ग्रहशान्ति पद्धतिः)
₹200.00
Author | Acharya Pt. Shivdatt Mishr |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2010 |
ISBN | 312-542-2392544 |
Pages | 328 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0169 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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ग्रहशान्ति पद्धतिः (Grah Shanti Paddhati) कर्मकाण्डियों के लिए ग्रहशान्ति-पद्धति का प्रमुख स्थान है। सभी शान्तिकर्मों एवं यज्ञ-यागादि में ग्रहों की शान्ति अनिवार्य रूप से शास्त्रों में विहित हैं और आवश्यक भी है। कहा भी गया है-
ग्रहा राज्यं प्रयच्छन्ति ग्रहा राज्यं हरन्ति च।
ग्रहे व्याप्तमिदं सर्वं त्रैलोक्यं सचराऽ चरम्।।
अर्थात् सुन्दर ग्रह राजाओं के लिए राज्य प्रदान करने में सहायक होते हैं। और दुष्ट ग्रह राजाओं के राज्य को नष्ट भी कर देते हैं। इन ग्रहों में ही जड़-चेतनात्मक समस्त जगत् व्याप्त है। और भी,
ग्रहा गावो नरेन्द्राश्च ब्राह्मणाश्च विशेषतः।
पूजिताः पूजयन्त्येते निर्दहन्त्यपमानिताः।।
अर्थात् ग्रह, गौ, राजा तथा विशेष कर ब्राह्मणगण त्रिलोक में सम्मानित होने पर उन्नति प्रदान करते हैं। और अपमानित होने पर ये नष्ट भी कर देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि, मनुष्यों को, ग्रहों की अनुकूलता के लिए उनकी सविधि शान्ति परम आवश्यक है। इसके लिए प्रस्तुत ग्रहशान्ति-पद्धति सर्वथा उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि ग्रहशान्ति के और भी संस्करण प्रकाशित हुए है, फिर भी प्रस्तुत पद्धति अपनी शैली में सर्वथा अभिनव, सरल, सुबोध *एवं सर्वसाधारण विद्वानों के लिए भी बोधगम्य है। इसमें – हिन्दी टीका के साथ ग्रहशान्ति अनुक्रम, स्वस्तिवाचन, गणेशाम्बिकापूजन, कलशस्थापनपूजन, पुण्याहवाचन, अविघ्नपूजन, मण्डपस्थापनप्रतिष्ठा, षोडशमातृकापूजन, वसोर्धारापूजन, आयुष्यमन्त्रजप एवं नान्दी-श्राद्धादि अनेक विषय दिये गये। और सर्वतोभद्र एवं लिंगतोभद्र के सभी देवताओं का यथावत् स्थापन एवं पूजन भी निहित है।
हिन्दी टीका के साथ सरल एवं सुगम शैली में पद्धति का निर्माण तथा मन्त्रानुक्रमणिका और श्लोकानुक्रमणिका आदि का उल्लेख प्रस्तुत पुस्तक की प्रमुख विशेषता है, जो अब तक की प्रकाशित पद्धतियों में प्रायः अनुपलब्ध हैं। प्रस्तुत पद्धति के द्वारा सर्वसाधारण विद्वान् भी समस्त वैदिक संस्कार, शान्तिकर्म एव यज्ञ-यागादि सभी कार्य भली-भाँति करा सकते हैं। और इसको पूर्णरूप से कण्ठस्थ कर लेने पर प्रत्येक ब्राह्मण सभी यज्ञ-यागादि में निःसंकोच होकर वैदिक मन्त्रों को निर्भीकता पूर्वक बोल सकते हैं, इसमें संशय नहीं।
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