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Grih Vastu Shanti Vidhi arthat Grih Pravesh Vidhi (गृहवास्तुशान्तिविधिः अर्थात् गृहप्रवेशविधिः)

72.00

Author Pt. Ashok Kumar Gaud
Publisher Chaukhamba Vidya Bhavan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2015
ISBN -
Pages 256
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO00753
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Description

गृहवास्तुशान्तिविधिः अर्थात् गृहप्रवेशविधिः (Grih Vastu Shanti Vidhi arthat Grih Pravesh Vidhi) भोजन, वस्त्र और आवास ये मनुष्य की मूलभूत आवश्यकतायें हैं। भारतीय मनीषियों ने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए, इस विषय पर पर्याप्त चिन्तन व मनन और अपने वर्षों के अनुभव व शोध के आधार पर अपने विचारों को जनसामान्य के परोपकार अर्थात् कल्याण हेतु विभिन्न ग्रन्थों को लिखकर मार्गदर्शन किया है। जो ‘वास्तुशास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। भवन या गृह का आधार वास्तु है। ‘गृहस्थस्य क्रियाः सर्वा न सिद्धचन्ति गृहं विना।’

उपरोक्त वचन से गृहस्थ की सम्पूर्ण क्रियाओं का आधार और समस्त मनोरथों का साधक गृह सिद्ध होता है। वास्तुशास्त्रीय विधियों का ध्यान रखकर बनाये गये गृह में सुख, संमृद्धि एवं शान्ति सम्भव है। इस तथ्य को आज के वैज्ञानिक भी अंगीकार करते हैं। नव निर्मित गृह में रहने के लिए प्रवेश करते समय गृहवास्तु की शान्ति अर्थात् पूजा विधिवत् कर लेनी चाहिए, जिससे गृहवास्तुमण्डल में स्थित देवता सुख-समृद्धि देने में सहायक होते हैं। यदि ऐसा न हो तो वे सर्वथा एवं सर्वदा विघ्न और उत्पात करते ही रहते हैं। गृह, पुर और देवालय के सूत्रपात के समय भूमिशोधन, द्वारस्थापन, शिलान्यास एवं गृह-प्रवेश इन पाँच कर्मों के आरम्भ में वास्तुशान्ति अति आवश्यक है। यदि शिलान्यासादि के समय वास्तुशान्ति न भी हो, तो गृह-प्रवेश के आरम्भ में गृहवास्तु की शान्ति (पूजा और बलि द्वारा) अवश्य कर लेनी चाहिए। वास्तुशान्ति कराने वाले योग्य विद्वान् का चयन ही महत्त्वपूर्ण होता है, यदि वास्तुशान्ति का कार्य वैदिक विधि द्वारा पूर्णरूपेण सम्पन्न नहीं होता, तो गृहपिण्ड एवं गृह-प्रवेश का उत्तम से उत्तम मुहूर्त भी व्यर्थ हो जाता है।

गृह-निर्माण के सम्बन्ध में स्त्री, पुत्रादि, भोग, सौख्य, जननमिति के अनुसार स्त्री-पुत्रादि और अन्य उत्तम साधनों के भोग तथा धर्मार्थ, काम, सुखप्रद तथा समस्त जीव-जन्तुओं के सुख का स्थान और शीत, ताप, वायुजन्य कष्टों का एकमात्र निवारक गृह है। गृह-निर्माण से कूप, वापी, देवालय आदि का पुण्य प्राप्त होने से ही गृह-निर्माण को सर्वोपरि स्थान प्राप्त हुआ है। मैंने इस पुस्तक में गृहवास्तु से सम्बन्धित सभी विषयों का समावेश किया है। जिसकी आवश्यकता चिरकाल से बनी हुई थी। मुझे आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि वैदिक विद्वान्, कर्मकाण्डी एवं विद्वज्जन इस पुस्तक को अङ्गीकार करेंगे।

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