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Hindi Gyaneshwari (हिन्दी ज्ञानेश्वरी)

272.00

Author Sant Gyaneshwar
Publisher Vishvidyalaya Prakashan
Language Hindi
Edition 4th edition, 2023
ISBN 978-93-87643-61-1
Pages 465
Cover Paper Back
Size VVP0127
Weight
Item Code VVP0127
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Description

हिन्दी ज्ञानेश्वरी (Hindi Gyaneshwari) मुगलों के शासन के पूर्व ज्ञानदेवकालीन महाराष्ट्र एक सुखसम्पत्र राष्ट्र था। उस समय वहाँ यादव वंश का रामदेवराय यादव शासन की बागडोर सँभाले हुए था। महाराष्ट्र के लिए वह सुख एवं समृद्धि का काल था और जनता स्वराज्य के सुख का अनुभव कर रही थी। राजा को विद्या तथा कलाओं के प्रति अनुराग था। हेमाद्रि पण्डित सरीखा धुरंधर राजकर्ता उसका प्रधानमंत्री था तथा हेमाडपंत जैसा विद्वान उसकी सभा में महत्वपूर्ण पद पर आसीन था। उसने अनेक कलाओं को प्रश्रय दिया तथा राष्ट्र की संस्कृति के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह ठीक है कि तब तक महाराष्ट्र में इस्लामी आक्रमण की शुरुआत नहीं हुई थी किन्तु हिंदूधर्म अब उतना चुस्त नहीं रह पाया था। उसकी पहले की तेजस्विता समाप्त हो चुकी थी।

लोग धर्म का अंतरंग स्वरूप भूल चले थे और बाह्य आडंबरों के मोहजाल में फँस रहे थे। इस अवस्था का लाभ उठाकर जैन, लिंगायत आदि धर्म-संप्रदाय किसी न किसी बहाने सिर उठाने का प्रयास कर रहे थे। इस स्थिति का सामना करने की दृष्टि से उस समय तीन संप्रदाय प्रचलित थे- वैष्णव संप्रदाय, नाथ संप्रदाय तथा भागवत संप्रदाय। इनमें से नाथ संप्रदाय नितांत उदार था तथा इसे अधिकांश लोगों का समर्थन प्राप्त था। भागवत धर्म ही पंढरपुर का वारकरी संप्रदाय है। इन संप्रदायों की एक विशेषता यह थी कि इनमें परस्पर द्वेषभाव नहीं था। संत ज्ञानेश्वर पहले नाथ संप्रदाय में दीक्षित थे, किन्तु अपने व्यापक मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण उन्होंने वारकरी पंथ की स्थापना की। इस पंथ का उद्देश्य था अद्वैत भक्ति। भले ही यह पंथ चातुर्वर्ण्य का पोषक था किन्तु परमार्थ के मामले में वह किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रखता था।

ज्ञानेश्वरजी की गणना महाराष्ट्र के नितांत लोकप्रिय एवं श्रेष्ठ संतों में होती है। नाथपंथी साधुओं के सम्पर्क एवं उत्तर भारत के प्रवास के कारण उन्होंने मराठी के साथ-साथ हिन्दी जनमानस में भी प्रवेश कर लिया था। सामान्य जनता के लिए उन्होंने ‘श्रीमद्भागवत’ की सरल एवं सुबोध मराठी में टीका लिखी। यह ग्रन्थ अपने पदलालित्य एवं भाषामाधुरी आदि गुणों के कारण मराठी का उच्चकोटि का मौलिक ग्रन्थ बन गया। इस ग्रन्थ के अतिरिक्त उन्होंने ‘अनुभवामृत’, ‘चांगदेव पासष्टी’ एवं एक हजार के लगभग अभंग लिखे। संत ज्ञानेश्वर ने साधारण जनता में जिस चेतना को जगाने का प्रयास किया, उसे प्रत्यक्ष जीवन में साकार करने के लिए नामदेवजी ने अत्यन्त निष्ठा से काम किया।

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