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Karikavali (कारिकावली)

80.00

Author Sri Suryanarayan Shukl
Publisher Chaukhamba Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2021
ISBN -
Pages 252
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0128
Other कारिकावली (अनुमानखण्डादि-गुणनिरूपणान्त)

 

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Description

कारिकावली (Karikavali) कारिकावली के प्रत्यक्षखण्डान्त प्रथम भाग का हिन्दी अनुवाद सहित छः संस्करण हो चुका है। किन्तु अनुमानादि गुणनिरूपणान्त द्वितीय भाग का हिन्दी अनुवाद हमारे बालस्य से ही अब तक रुका था। भूमिका में हमने प्रतिपाद्य विषय पर कुछ चर्चा आरम्भ की है। उसे इस भाग की भूमिका में अविच्छिन्न रूप से चलाना आवश्यक समझकर प्रत्यक्ष खण्ड की अनुमान आदि प्रकरणों के प्रतिपाद्य विषय पर अपना विचार प्रस्तुत कर रहे हैं।

अनुमान खण्ड

प्रत्यक्ष खण्ड में बुद्धि के भेदों का निरूपण करते समय अनुमान चर्चा का विषय रहा है। वह अनुमान अनुमिति का करण है। परामर्श के पश्चात् उत्पन्न ज्ञान को अनुमिति कहते हैं। व्यापारवत् असाधारण कारण को करण कहते हैं। अनुमिति एक प्रमा है। प्रमिति करण प्रमाण है।इस प्रकार अनुमान एक प्रमाण है। यह अनुमान व्याप्तिज्ञान से जन्य है तथा लिङ्गपरामर्श से भी जन्य है। कुछ आचार्यों का मत है कि लिगपरामर्श व्यापार है तब व्याप्तिज्ञान ही अनुमान है। दूसरे आचार्यों का मत है कि लिङ्गपरामर्श के पश्चात् अनुमिति होती है अतः वह ही अनुमान है। प्रथम आचायर्यों के मत में कारण को सव्यापार होना चाहिए। दूसरे आचार्य व्यापार होना आवश्यक नहीं मानते।

अनुमान के दो प्रकार – अनुमान स्वार्थ और प्ररार्थ भेद से दो प्रकार का होता है। स्वार्थानुमान तो स्वयं के लिए होता है। अतः उसका निरूपण गौण है। मुख्यतः परार्थानुमान ही विवेचना का विषय है। यह पाँच वाक्य- खण्डों से समझाया जाता है। उन वाक्य खण्डों को अवयव अथवा न्याय कहते है। इनके प्रयोग इस प्रकार हैं-
( ४ )

प्रतिज्ञा – पर्वत में अग्नि है।

हेतु – क्योंकि घूम है।

उदाहरण – जो धूम वाला है वहाँ अग्नि है जैसे महानस।

उपनय – यह पर्वत धूमवान् है।

निगमन – यतः धूमवान् है अतः अग्निमान् है।

मीमांसकों का मत है कि उपनय का हेतु में तथा निगमन का प्रतिज्ञा में अन्तर्भाव कर लिया जाय तो तीन हों अवयव मान्य होंगे। पांच मानने में प्रथम द्वितीय की चतुर्थ पंचम से पुनरुक्ति होती है।

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