Karma Kand Digvijay (कर्मकाण्ड दिग्विजय)
₹212.00
Author | Maharshi Ramsevak Acharya |
Publisher | Manoj Prakshan, Agra |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 328 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0165 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कर्मकाण्ड दिग्विजय (Karma Kand Digvijay) वेदों में कर्मकाण्ड का विशेष महत्व है। चारों वेद कर्मकाण्ड से भरे पड़े हैं। वेदों में सर्वाधिक मन्त्र कर्मकाण्ड विषय पर ही है। इसलिये कर्मकाण्ड वेद का एक विस्तृत भाग है। ‘कर्मकाण्ड’ दो शब्दों से मिलकर बना है। प्रथम शब्द ‘कर्म’ और द्वितीय शब्द ‘काण्ड’ है। कर्म का तात्पर्य शास्त्रोक्त शुभ कर्मों से है और काण्ड का शाब्दिक अर्थ अनुभाग, अंश, खण्डादि है। वेद विहित कर्मों तथा संस्कारों का नाम ‘कर्मकाण्ड’ है। गीता में लिखा है कि यः शास्त्रविधि उत्सृज्य वर्तते कामकारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥ अर्थात् जो मनुष्य शास्त्र विधि का उल्लंघन करके मनमाना आचरण (कर्म) करता है। वह कभी भी अपने अभीष्ट कार्य में सिद्धि को प्राप्त नहीं होता है और न उसे सुख मिलता है।
कर्मकाण्ड के बिना मनुष्य जीवन अधूरा है। कर्मकाण्ड की सम्पन्नता से ही यथार्थ में शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि होती है। कर्मकाण्ड से मनुष्य सुसंस्कारित होकर प्रेम मार्ग और श्रेय मार्ग दोनों को प्राप्त करता है। कर्मकाण्ड का प्रभाव मनुष्य के हृदय में गहरा पड़ता है तथा कर्मकाण्ड की साधना से मनुष्य ब्रह्म पद को प्राप्त होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में उन सभी कर्मकाण्ड के विषयों का समावेश कर दिया गया है। जिनकी पुरोहित-आचार्य को प्रायः विशेष रूप से अधिक आवश्यकता पड़ती है। जैसे-स्मार्त यज्ञ, वास्तु पूजन, महा मृत्युजय, वाहन पूजन, षोडश संस्कार, टीका, समारोह, कन्यावरण, हरिद्रा लेपन, द्वार पूजन, मूल शान्ति, पगड़ी संस्कार, वैतरणी गोदान, तुलसी विवाह, विश्वकर्मा पूजन, व्रत उद्यापन, रूद्राभिषेक, श्रद्ध-तर्पण, कुलपितर प्रतिष्ठा (थान) स्थापना आदि सबकी सरलतम विधि दी गयी है।
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