Brihad Braham Nitya Karma Samuchay (बृहद ब्रह्मनित्यकर्मसमुच्चयः)
₹340.00
Author | Shatri Yagyadatt Durgasankar Thakur |
Publisher | Shastri Durga Sankar Sanskrit Pustakalaya |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2000 |
ISBN | - |
Pages | 596 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0164 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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बृहद ब्रह्मनित्यकर्मसमुच्चयः (Brihad Braham Nitya Karma Samuchay) आदरणीय महानुभाव,बृहद्ब्रह्मनित्यकर्मसमृचय की यह २१ वी आवृत्ति ही इस पुस्तक की उपयोगिता एवं आपके आदर की परिचापिका है। अतः इस बिषयमें अधिक कुछ कहने की या लिखने की आवश्यकता मुझे प्रतीत नहीं होती। पहले की आवृत्ति के अनुसार मैंने इसे आठ विभागोंमें बाँट दिया है ताकि, कोई भी विषय आसानी से हुँदा जा सके। अनुक्रमणिका को देखते ही आपको इस बात का पता चल जायगा। इस आवृत्तिमें भी आपन्त उपयोगी एक परिशिष्ट प्रकरण है जिसमें आप महालय, मासिक एवं सांवत्सरिक श्राद्ध प्राका पुरा पायेंगे।
इसकी पूर्व की आवृत्तिसे यह आवृत्ति मुझे काफी महंगी पड़ी है. उसके कई विशिष्ट कारण है। इसके उपयोगमें आनेवाली कई चीजोंचे, भार. विदेशीय वस्तुओंकी आयात पर प्रतिबन्ध आजानेके कारण दुगने, चिगुने बढ़ गये है यह आपको सुधिदित है ही। आप यह भी जानते हैं कि वैदिक स्वरोंवाली छपाई भी बहुत कम प्रेसों में होती है और अधिक महगी होती है। फिर मी मैंने इस पुस्तक में सफेद, चिकने कागज का ही उपयोग किया है और पहले की तरह इस पुस्तक को विशेष शुद्ध और सुन्दर बनाने की भरसक कोशिश की है। पृष्ट ५२५ है और बाइन्डिग भी पक्का है। फिर भी इसका मूल्य बहुत थोड़ा ही बढ़ाया है।
इस पुस्तक के प्रकाशन के केवल दो ही उद्देश्य हैं। एक तो श्रौतस्मातेकर्मानुष्ठानप्रेमियों की सेवा करना और दूसरा, इस पुस्तक के लेखक मेरे स्वर्गीय पूज्यपाद पितामह की धार्मिक वृत्ति-प्रवृत्ति का स्मारक करना।इस ग्रन्थ में पहलेकी तरह सर्वसामान्य और प्रायः कण्ठस्थ मंत्रोंको छोडका सभी मन्त्र जगह जगह पर मैंने पूरे दिये हैं। सर्वसामान्य गणपतिपूजन और पोडश संस्कारविधिको देखने से आपको यह पता चलेगा। इस स्थिति में पूरे मन्त्रों के साथ यदि मैं इस पुस्तक को बडे अक्षरों में देने की चेष्टा करता तो इतने पृष्ठोंमें, इतनी कीमत में, इतने विषय, में हरगीज नहीं दे सकता। और पृष्ठसंख्या बढाकर इसकी कीमत अधिक बढ़ा देना मैंने उचित नहीं माना। आशा है पाठक इस बातको सहृदयतापूर्वक सोचेंगे, समझेंगे और मेरे इस प्रयास को सहानुभूतिसे देखेंगे।
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