Kirtan Bhandar (कीर्तन भण्डार)
₹40.00
Author | Pt. Jagadamba Saran Panday |
Publisher | Shri Durga Pustak Bhandar Pvt. Ltd. |
Language | Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 167 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SDPB0034 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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CompareDescription
कीर्तन भण्डार (Kirtan Bhandar) सरकार बड़े चालाक हो तुम, लोँ देख तुम्हारी लासानी। हम खाक हैं और अफलाक हो तुम, फिरभी मुझसे क्या रगड़ठानी। खुद मन में ही बस जाते हो, मुझसे दुष्कर्म कराते हो। फिर बनिके सिपाही ले चाबुक, करते हमारी परेशानी। स० खुश करके कभी हँसाते हो दुःख देकर कभी रुलाते हो। कभी करते जिगर पत्थर का कड़ा कभी होता है दिलपानी। स० हो करके साह साहब हाकिम फिर चाल तुम्हारी बेढंगी। हो परम स्वतंत्र ना सर पे कोई, याही से करते मनमानी। स० जब आपमें इन्साफ नहीं, सो मुझसे अब होना खिलाफ नहीं। जगदम्बासरन क्या माफ नहीं, तकसीर भरी यह जिन्दगानी।
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