Matra Pradeep (मात्रा-प्रदीप)
₹850.00
Author | Mahamandaleshwar Karshnipravar |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2016 |
ISBN | 978-93-5146-147-0 |
Pages | 563 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0145 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मात्रा-प्रदीप (Matra Pradeep) “मात्रा-प्रदीप’ नाम से आचार्य महामण्डलेश्वर कार्षिणप्रवर स्वामी श्री गुरुशरणानन्द जी महाराज ने जो ग्रन्थ ‘मात्रा’ पर अपनी दृष्टि के साथ लोकमंगल हेतु, जिज्ञासु साधकों के लिए उपलब्ध कराया है, वह अतीव उपयोगी है। क्योंकि मात्रा के अर्थ को स्पष्ट करने हेतु इस प्रकार की अन्य व्याख्या उपलब्ध नहीं प्रतीत होती। उदासीनाचार्य भगवान् श्री श्रीचन्द्र प्रभु ने जीवों को जन्म-मरण की परम्परा से मुक्ति दिलाने हेतु उपनिषदों की तरह अत्यन्त रहस्यपूर्ण मात्रा का प्रणयन किया है। मात्रा-शास्त्र, मात्रासूत्र आदि नामों से व्यवहार में प्रसिद्ध यह आध्यात्मिक रहस्य का प्रतिपादक ग्रन्थ अपने कलेवर के अन्त में केवल ‘मात्रा’ शब्द से ही आचार्यचरण द्वारा बोधित किया गया है। अन्त के वाक्य, जो मात्रा की समाप्ति में उल्लिखित हैं, मात्रा के नाम एवं उसके प्रणयन के उद्देश्य दोनों को स्पष्ट करते हैं।
भारतीय चिन्तन परम्परा एवं उपदेश परम्परा में यह देखा जाता है कि कोई भी उपदेशक या ग्रन्थकार अपने पूर्व के सम्बद्ध ग्रन्थों एवं उपदेशों की उपेक्षा न कर उनके प्रति सम्मान का भाव रखता है। आचार्यचरण ने भी अपने पूर्व सन्तों की रहस्य प्रतिपादन हेतु उक्ति वैचित्र्यपूर्ण रहस्यात्मक शैली का अनुवर्तन किया है। ‘मात्रा-प्रदीप’ को आरम्भ से अन्त तक देखने से यह स्पष्ट होता है कि रहस्यार्थ के प्रतिपादन हेतु गोरखबानी, योगसूत्र एवं उपनिषदों के वाक्यों तथा अन्य ग्रन्थों का अवलम्ब लेकर व्याख्यान की दिशा का निर्धारण किया गया है। मात्रा पर चर्चा के सन्दर्भ में ‘गोरखबानी’ का उल्लेख डॉ. विष्णुदत्त राकेश, पूर्व-अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने महाराजश्री से किया था। अन्य प्रसिद्ध मात्राओं के अध्ययन पर भी आपने बल दिया था।
गोरखबानी का आधार लेकर ही ‘कहु रे बाल’, ‘सूरत की सूई लै सद्गुरु सीवै’ तथा ‘भोग महारस’ आदि मात्राओं का अर्थ परम्परानुसार निर्धारित किया जाना सम्भव हो सका है; क्योंकि गोरखबानी में ‘बाल’ शब्द को ब्रह्मपरक, ‘महारस’ शब्द को ब्रह्मरन्ध्र से क्षरण को प्राप्त होने वाले अमृतपरक तथा ‘सुरति’ शब्द को सुचित्त या शोभनचित्तपरक बतलाया गया है। यह तो विशेष निदर्शन मात्र है, अन्य मात्राओं के अर्थ निर्धारण में भी गोरखबानी, जो सन्तपरम्परा का प्रतिनिधित्व करती है, का अधिक महत्त्व है। अतः सन्तपरम्परा से प्राप्त समुचित अर्थों को गोरखबानी से संवाद प्राप्त कराकर ‘मात्रा-प्रदीप’ के प्रणेता ने बहुत ही विशिष्ट कार्य किया है। इस तथ्य की अनुभूति मात्रा की प्रकृत व्याख्या के अनुशीलन से स्पष्ट रूप में होती है।
मात्रा-शास्त्र भगवान् श्रीचन्द्र की वाणी से निःसृत ऐसा पीयूष है, जो सन्तपरम्परा का अनुगमन कर उसे अनुप्राणित करते हुए मानव मात्र की अमरता के लिए वरदान के रूप में हमें प्राप्त है। इसका महत्त्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है; क्योंकि इसके अनुशीलन से मानव को अमरता ही नहीं देवत्व की प्राप्ति होती है। वह संसार में रहकर ही असंसारी होकर जीवन्मुक्ति का आनन्द प्राप्त कर सकता है। मात्रा-शास्त्र क्या है? इसे जानने के लिए हमें मात्रा की ही शरण में जाना होगा। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, मात्रा ऐसे उपदेशों का संग्रह है, जिनके अनुसार चलकर हम माया से अपनी रक्षा (त्राण) कर सकते हैं। माया से त्राण का अभिप्राय जन्म-मरण की परम्परा से मुक्ति पाना है। श्रुति में यह प्रतिपादित किया गया है कि ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती।
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