Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-13%

Pratishtha Prakash (प्रतिष्ठा प्रकाश)

130.00

Author Shri Dhar Shastri
Publisher Shastri Prakashan
Language Sansakrit
Edition 1st edition, 2020
ISBN -
Pages 407
Cover Paper Back
Size 21 x 1 x 12 (l x w x h)
Weight
Item Code SP0038
Other Dispach in 1-3 days

 

9 in stock (can be backordered)

Compare

Description

प्रतिष्ठा प्रकाश (Pratishtha Prakash) मूत्ति प्रतिष्ठा की विषि मुख्यतः अग्नि पुराण में वर्णित है। मत्स्य आदि अन्य पुराणों में भी देव प्रतिष्ठा विधि का उल्लेख है। देव प्रतिष्ठा कर्म सात दिन, पांच दिन, तीन दिन, एक दिन में अपनी शक्ति और सुविधानुसार किया जा सकता है- यह उल्लेख धर्मशास्त्रों में किया गया है। मूत्ति प्रतिष्ठा २ प्रकार की होती है १. चर [चल] प्रतिष्ठा – इसमें मूत्तियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। २. अचल [स्थिर] प्रतिष्ठा-इसमें मूत्ति को हटाया नहीं जा सकता है। मूत्तियाँ-मिट्टी, लकड़ी, लोहा, रत्न, पत्थर, चंदन आदि की बनायी जा सकती है, यह अग्निपुराण के ४३ अध्याय में वर्णित है। मूत्तियों की अचल प्रतिष्ठा के लिए मन्दिर [प्रासाद] बनवाना चाहिए। मन्दिर किसी नदी-तालाब या कुआं के पूर्व उत्तर या पश्चिम की ओर होना चाहिए। मन्दिर यदि गांव के बीच में हो तो उसका द्वार पश्चिम की ओर रखे। गांव के पूर्व में मन्दिर बनवाने पर भी मन्दिर का द्वार पश्चिम की ओर रखे। यदि गांव के किसी कोण में मन्दिर बनवाया जाय तो मन्दिर का द्वार गांव को बोर रहे। गांव से दक्षिण या उत्तर या पश्चिम दिशा में भन्दिर बनवाया जाय तो मन्दिर का हार पूर्व की जोर रखे इसक विस्तृत वर्णन अग्निपुराण में किया गया है।

प्रतिष्ठा विधि

मन्दिर बन जाने पर मृत्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करके विधिवत् उनकी स्थापना करनी चाहिए। मूत्ति स्थापना के पूर्व यथाविधि वेदी पूजन-हवन अन्नाधिवास-जलाधिवास-शय्याधिवास किया जाता है। शिवलिंग प्रतिष्ठा में शिव पार्वती विवाह की भी प्रथा है। इस पद्धति में सभी विधियाँ क्रम बद्ध लिखी गयी है। इसी के अनुसार क्रमशः मूत्ति प्रतिष्ठा करानी चाहिये।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Pratishtha Prakash (प्रतिष्ठा प्रकाश)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×