Ramayan Mimansa (रामायण मीमांसा)
₹475.00
Author | Swami Katpatri JI Maharaj |
Publisher | Radhakrishna Dhanuka Prakashan Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 9th edition, 2022 |
ISBN | - |
Pages | 992 |
Cover | Hard Cover |
Size | 18 x 5 x 24 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KJM0012 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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रामायण मीमांसा (Ramayan Mimansa) ग्रन्थ के रचयिता सर्वजीबहिर्तधी वीतराग तत्त्वदर्शी महात्मा है। उनका किसी के प्रति मनोमालिन्य अथवा परिपन्यिता वैसे ही संभव नहीं है जैसे सकलहृदयालादक शीतरथिम से तिग्मरश्मि के उत्ताप का उद्गम। फिर भी जहां उन्हें अशुद्धि दिखाई देती है, जहाँ अल्पज्ञों द्वारा बेद और शास्त्रों के अयं का अनयं कर उनपर प्रहार किया हुआ दीख पड़ता है एवं जहाँ संस्कृतवाङ्मय में दुरभिसन्धिवश अथवा अज्ञानवस भारतीय संस्कृति के विरोधी वातावरण का सर्जन किया रहता है, वहाँ उन्हें लोक-कल्याण के लिए यह अपं अशुद्ध है, शास्त्र का तात्पर्य यह है, यह आख्या भारतीय संस्कृति तया शास्त्रमर्यादा के विपरीत है; यह कहना उचित हो नहीं परमावश्यक भी है। इस प्रकार का प्रतिपादन करने वालों के मधुर वाम्जाल में फॅस कर जनता अपनी सनातन मर्यादा का त्याग न करे। भारतीय संस्कृति से भित्र संस्कृतिवाले बेद-शास्त्रों के तात्पयं के अनभिज्ञ मनीषियों का कपन अनुकरणीय नहीं है। बह किसी दुरभिसन्धि वश-जनता को विधर्मी बनाने के लिए-वागुरा है, मार्ग में तूण आदि से आच्छादित महान् गर्त है। इस मार्ग का पथिक होने पर गर्तपात का भय है। यह बात कोई शास्त्रतत्वामिश महान् मनीषी ही बता सकता है। यदि वह भोली भाली शास्त्रतात्पर्यानभिज्ञ जनता का हितैषी है तो अवश्य हो यह बताना चाहिए। न बताता उनका अपने कर्तब्य से विचलित होना कहा जायगा।
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