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Rigved Set of 4 Vols. (ऋग्वेद 4 भागो में)

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Author Dr. Ashok Kumar Gaud
Publisher Rupesh Thakur Prasad Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition -
ISBN 978-93-85596-90-2
Pages 1606
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0115
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Description

ऋग्वेद 4 भागो में (Rigved Set of 4 Vols.) ऋग्वेद विश्व का सर्वप्राचीन ग्रन्थ है। इस विषय में विश्व के प्रायः सभी विद्वान् एकमत हैं। इस पर देशी-विदेशी अनेक महर्षियों ने अनेक प्रकार से विपुल एवं गहन अध्ययन किया है तथा अपना मत प्रकट किया है। यद्यपि मान्य विद्वानों द्वारा किए गए व्यापक अध्ययन, अनुशीलन एवं अनुसन्धान के रहते हुए, ऋग्वेद के विषय में कुछ कहना शेष नहीं रह जाता है, तथापि अपने को धन्य करने के लिए कुछ कहने की मात्र सार्थकता भर रह जाती है। ऐसा भी नहीं है कि ऋग्वेद पर विचारकों की लेखनी विराम ले ली है और यह उचित भी नहीं है।

ऋग्वेद की महिमा का आकर्षण ही ऐसा है, जो हमेशा क्रियाशील रहने को प्रेरित करता रहता है। ईश्वर की महिमा को गाकर पार नहीं पाया जा सकता है। ईश्वर या ईश्वर की वाणी (वेद) ही नहीं, अनीश्वर (मायाप्रपञ्च) को भी अन्ततः विचारकों ने अनिर्वचनीय कहा है। दोनों की अनिर्वचनीयता का व्यडत्यार्थ भिन्न है। माया की अनिर्वचनीयता का व्यङ्गयार्थ, उसके चिन्तन का परित्याग है, पर ईश्वर की अनिर्वचनीयता का व्यङ्ग्यार्थ है कि निर्वचन अशक्य होने पर भी, उसे करते ही रहना चाहिए, इसी में जीवन की सार्थकता है, यही ऋग्वेद का भी सन्देश है।

ईश्वर (परमात्मा, ब्रह्म) नित्य है, उसका ज्ञान भी अनन्त एवं नित्य है। अतः ईश्वर की वाणी को वेद कहें या साहित्य, इतिहास कहें या विज्ञान वह नित्य ही होगा। किसी वाङ्मय का ऐतिहासिक अध्ययन सम्भव है, अन्यथा वह तात्कालिक समाज का दर्पण कैसे हो सकेगा। किसी भी साहित्य से उस समय के ज्ञान-विज्ञान, लौकिक, पारलौकिक एवं सांस्कृतिक क्रिया कलाप का, लोकव्यवहार का ज्ञान होता है। शास्त्रों द्वारा ईश्वर, जीव, माया, ऋषि, देव आदि का परिचय करके उस स्तर से विचार करने पर प्रायः प्रश्न अपने आप समाहित हो जाते हैं। वेद एवं वैदिक साहित्य के अनुकूल रचित शास्त्र पुराण आदि को वेद का ही व्याख्यान (भाष्य) समझना चाहिए। इसीलिए “इतिहासपुराणाभ्यां वेदशब्दोपबृंहयेत्” यह उक्ति प्रसिद्ध है।

वाल्मीकि रामायण सर्वप्रथम लौकिक (संस्कृत भाषा का) काव्य है, अतः आदिकाव्य के नाम से प्रसिद्ध है तथा वाल्मीकि आदि कवि कहलाते हैं। वाल्मीकि का रामायण, राम के जीवनकाल में ही लिखा गया है। जिसमें राम का कुछ चरित्र बीत गया था तथा कुछ शेष था। सम्भवतः वाल्मीकि का आधमर्ण्य वेदव्यास जी ने ठीक से अपने पुराणों में निभाया है। सभी पुराणों में भूत एवं वर्तमान के विषय तो हैं ही भविष्य के भी विषय हैं। यहाँ तक कि एक भविष्यपुराण पृथक् से ही उन्होंने रच दिया है। जिसके चलते भारतीय जनमानस में भगवान् कल्कि के अवतार की भविष्यत्प्रतिक्षा है।

जिन ऋषियों का ज्ञान त्रैकालिक तथा निर्मल है’, उनकी स्थिति में जब हम नहीं हैं, तो हम किस ज्ञान की कसौटी पर कसेंगे? आखिर हम तो अपने स्तर से ही आकलन कर सकते हैं। तब ऋषियों द्वारा ज्ञात या प्राप्त वैदिक स्थिति का ठीक ठीक हम आकलन करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं? कुछ वैदिक ऋषि एवं वैदिक साहित्य वाल्मीकि के पूर्व के हैं। रामायण, पुराण एवं महाभारत के पूर्व वैदिक साहित्य ही था। वाल्मीकि एवं व्यास की क्षमता से ही वैदिक ऋषियों की क्षमता का आकलन हो सकता है कि वे इनसे किसी भी अर्थ में कम नहीं रहे होंगे। पुनः ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु, इन्द्र या परमेश्वर (पारब्रह्म) के ज्ञान में किसी भी काल की घटनाओं का अभाव कैसे सम्भव है। अल्पमेधा सम्पन्न व्यक्ति, पुरोधाओं की मेधा में सन्देह ही कर सकता है। उसे कपोलकल्पित एवं अन्यथा ही सिद्ध करेगा।

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