Rishi Panchami Vrat Katha (ऋषि पंचमी व्रत कथा) – 442
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Author | Daulat Ram Gaud |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2006 |
ISBN | 442-542-2392544 |
Pages | 24 |
Cover | Paper Back |
Size | 25 x 0.5 x 13 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0033 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha) भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत में ऋषियों की पूजा की जाती है और मासिक धर्म के समय के लिए जो धार्मिक ग्रंथों में नियम बताए गए हैं उसमें चूक होने से लगने वाले पाप से मुक्ति के लिए व्रत का पालन किया जाता है।
ऋषि पंचमी व्रत कथा और महत्व
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी पड़ती है। सनातन धर्म में यह दिन सप्त ऋषियों को समर्पित माना गया है। इस दिन गंगा स्नान एवं दान देने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि ऋषि पंचमी की कथा पढ़ने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और पापों से भी मुक्ति मिलती है।
ऋषि पंचमी व्रत की पौराणिक कथा
एक समय एक गांव में उत्तक नामक एक ब्रह्मण अपने परिवार के साथ रहा करता था। उस ब्रह्मण की एक पुत्री थी। उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह सुयोग्य लड़के के साथ कर दिया, लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई। इसके बाद उसकी पुत्री मायके वापसआ गई। एक दिन उसकी पुत्री अकेले सो रही थी, तभी उसकी मां ने देखा की बेटी के शरीर पर कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं। यह बात उसने अपने ब्राह्मण पति को बताई।
पत्नी के बताने पर उत्तक जो ऋषि के समान जीवन जीते थे उन्होंने ध्यान लगाकर देखा। इन्होंने देखा कि, पूर्वजन्म में भी उनकी पुत्री एक ब्राह्मण की पुत्री थी। उस जन्म में राजस्वला (महावारी) के दौरान उसने पूजा के बर्तन छू लिए थे। इस पाप की वजह से उसे यह कष्ट मिल रहा है। इससे छुटकारा पाने के लिए बेटी ने पिता के कहे अनुसार ऋषि पंचमी का व्रत किया। इससे उत्तक की बेटी को सौभाग्य की प्राप्ति हुई। इस तरह से ऋषि पंचमी का व्रत प्रसिद्ध हुआ और धीरे-धीरे इस व्रत का विस्तार होता चला गया।
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