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Sampurna Kumbha Vivah Padhhati (सम्पूर्ण कुम्भविवाह पद्धतिः)

35.00

Author Acharya Devnarayan Sharma
Publisher Shri Kashi Vishwanath Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2023
ISBN 978-93-92989-27-8
Pages 48
Cover Paper Back
Size 18 x 2 x 12 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0257
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Description

सम्पूर्ण कुम्भविवाह पद्धतिः (Sampurna Kumbha Vivah Padhhati) सनातन धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में गृहस्थाश्रम को बहुत महत्त्व दिया गया है, क्योंकि यही अन्य तीनों आश्रमों का पोषक या रक्षक है। गृहस्थाश्रम की रक्षा तथा पितृऋण से मुक्ति के लिए ‘विवाह’ अत्यन्त आवश्यक है। शास्त्रों में कहा गया है- अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गं नैव च नैव च। पुत्रहीन व्यक्ति को सद्गति नहीं मिलती। सुखद दाम्पत्य जीवन तथा सुपुत्र की प्राप्ति के लिए विवाह के पूर्व ज्योतिषशास्त्र के अनुसार वर तथा कन्या की जन्मकुण्डली का मिलान किया जाता है। यह विचार करते समय कुण्डली में ग्रह तथा लग्न की कुछ ऐसी स्थितियाँ बनती हैं जो वर तथा कन्या दोनों के लिए अनिष्टकारक होती है। उदाहरण के लिए वर या कन्या की जन्मकुण्डली में लग्नस्थान, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में यदि मंगल हो तो वह मंगली कही जाती है और यह दोनों के लिए अनिष्टकारक योग होता है। इसीलिए सामान्यतः मंगली कन्या का विवाह मंगला लड़के से ही करने को कहा जाता है।

कुछ परिस्थितियों में मंगल दोष का स्वतः निवारण भी हो जाता है। इसी प्रकार प्रश्न लग्न से छठें या आठवें स्थान में यदि चन्द्रमा हो अथवा लग्नस्थान में कोई पापग्रह हो और उससे सातवें स्थान में मंगल हो तो कन्या के लिए वैधव्य योग बनता है ‘षष्ठाष्टस्थः प्रश्न लग्नाद्यदीन्दुर्लग्ने क्रूरः सप्तमे वा कुजः स्यात्।’ (मु०चि०, विवाह प्र०) ऐसे सभी दोषों की निवृत्ति के लिए धर्मशास्त्र में कुम्भविवाह, अश्वत्थविवाह तथा विष्णुप्रतिमा विवाह की व्यवस्था दी गई है। –

जन्मोत्थं च विलोक्य बालविधवायोगं विधायव्रतं, सावित्र्याउत पैप्पलं हि सुतया दद्यादिमां वा रहः।
सल्लग्नेऽच्युतमूर्ति पिप्पल घटैः कृत्वा विवाहं शुभं, दद्यात्तां चिरजीविनेऽत्र न भवेद्दोषः पुनर्भूभवः ।। (मु०चि०, वि०प्र० श्लोक ७)

ये तीनों विवाह कन्या के विवाह के दिन ही किसी एकान्त स्थान, मंदिर, या पीपल वृक्ष के समीप कर लेना चाहिए, यह विवाह करने पर उपर्युक्त दोष की निवृत्ति हो जाती है तथा काया को पुनर्विवाह का दोष नहीं लगता है। कर्मकाण्ड की पुस्तकों में तीनों प्रकार की विधियों का पृथक् वर्णन मिलता है। यहाँ ‘कुम्भ विवाह’ की विधि का उल्लेख किया जा रहा है। इससे पुरोहितगण सरलतापूर्वक विवाह सम्पन्न करा सकें। पुरोहितों को कोई कठिनाई न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है।

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