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Sanskrit Chanda Aur Sangeet (संस्कृत छंद और संगीत)

120.00

Author Dr. Suman Rani
Publisher Bhartiya Book Corporation
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2021
ISBN 978-81-851228-7-8
Pages 121
Cover Paper Back
Size 13 x 0.5 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0064
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Description

संस्कृत छंद और संगीत (Sanskrit Chanda Aur Sangeet) छन्द वैदिक ज्ञान परम्परा के मूल स्तम्भ रूप अमृतवाणी के द्योतक हैं। वैदिक मन्त्रों के अर्थज्ञान एवं श्रुतिगोचरता की दृष्टि से छन्द न केवल आवश्यक अपितु वेदों के प्राणभूत है। छन्दों के सस्वर वाचन से वैदिक मन्त्रों सहित लौकिक पद्यों का भी सौन्दर्य कई गुणा बढ़ जाता है। छन्द ज्ञान वैदिक एवं लौकिक दोनों प्रकार के काव्यों के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं, क्योंकि छन्द ज्ञान अर्थज्ञान के साथ-साथ छात्र-छात्राओं और पाठको अथवा श्रोतागणों को संस्कृति एवं संस्कृत भाषा के प्रति रूचि उत्पन्न करने का भी अनुपम कार्य करता है।

डॉ० सुमन रानी ने संस्कृत के प्राणभूत तत्व छन्दों को मुख्य विषय के रूप में लेकर छन्द विषयक सूक्ष्म तथ्यों को सरल एवं रोचक रूप में प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में छन्द ज्ञान के लिए आवश्यक सभी परिभाषिक शब्दावली के साथ संगीतात्मक शब्दावली का भी सामान्य ज्ञान प्रस्तुत किया, जिससे न केवल छन्द ज्ञान अपितु सस्वर उच्चारण की प्रक्रिया का भी ज्ञान करवाया गया है। यह पुस्तक छात्र-छात्राओं के साथ ही उन सभी पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, जो संस्कृत या छन्द शास्त्र के अध्ययन के इच्छुक है। इस पुस्तक के लिए मैं डॉ० सुमन रानी को हृदय से आशीर्वाद प्रदान करता हूँ। तथा ईश्वर से उनके उज्जवल भविष्य की मंगलकामना करता हूँ। विषयवस्तु की दृष्टि से पुस्तक को पाँच अध्यायों में विभक्त किया गया है।

प्रथम अध्याय : प्रथम अध्याय में वैदिक एवं लौकिक छन्दों का आधार, छन्द विभाग, आचार्य पिङ्गलमुनि का छन्दशास्त्र, पिङ्गल के पूर्ववर्ती छन्दशास्त्रीय आचार्य, वैदिक तथा लौकिक छन्दों से सम्बन्धित ग्रन्थों का सामान्य परिचय, आचार्य पिङ्गल का देश-काल तथा पिङ्गल के छन्द शास्त्र का संक्षिप्त परिचय है।

द्वितीय अध्याय : वर्ण परिचय, अक्षर, चरण, मात्रिक/वर्णिक छन्द सम, अर्धसम वृत्तों का परिचय, त्रिक्, यति नियम, छन्द यति निर्धारक संख्या निर्देश, लघु-गुरु एवं गणों का स्वरूप इत्यादि छन्द विषय शब्दावली की चर्चा की गई है।

तृतीय अध्याय : इस अध्याय में सर्वप्रथम छन्द शब्द का अर्थ एवं स्वरूप, वैदिक छन्दों के अक्षर गणनानुसारी एवं पादाक्षर गणनानुसारी प्रकारों के साथ-साथ वैदिक छन्दों के प्रथम सप्तक अर्थात् गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप् और जगती इन सात छन्दों का भेद/प्रभेदो सहित विस्तार से उल्लेख किया है।

चतुर्थ अध्याय : तृतीय अध्याय में वैदिक छन्दों के पश्चात् चतुर्थ अध्याय में लौकिक छन्दों जैसे आर्या, अनुष्टुप्, इन्द्रव्रजा, उपेन्द्रव्रजा, वंशस्थ, द्रुतविलम्बित, भुजङ्गप्रयातम्, वसन्ततिलका, मालिनी, शिखरिणी, मन्द्राक्रान्ता शार्दूलविक्रीडितम्, स्रग्धरा, हरिणी, सुन्दरी इत्यादि छन्दों को लक्षण, उदाहरण के साथ मात्रा प्रयोग घटित करके प्रस्तुत किया गया है।

पञ्चम अध्याय : यह अध्याय छन्द संगीत की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जो छन्द गायन की आवश्यकता से सम्बन्धित शब्दावली का ज्ञान करता है। इस अध्याय में नाद, गान्धर्व/गान, गानपद्धति, सप्तस्वर, ग्राम, लय, गीति के भेद, ताल, कला एवं तालश्रित कला के भेद, श्रुति ध्रुवा तथा ध्रुवासमन्वित गान इत्यादि विषयों को सम्मिलित किया है।

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