Sarva Darshan Sangrah (श्रीमन्माध्वाचार्यकृताः सर्वदर्शन सङ्ग्रहः)
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Author | Dr. Madhav Janardan Ratate |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2022 |
ISBN | - |
Pages | 106 |
Cover | Paper Back |
Size | 13 x 0.5 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0065 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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सर्वदर्शनसंग्रहः (Sarva Darshan Sangrah) सर्वदर्शनसंग्रह का मूलग्रन्थ तो अनेक स्थानों से प्रकाशित हुआ है, लेकिन सर्वदर्शनसंग्रह की व्याख्याओं में पं. वासुदेव शास्त्री अभ्यंकर की संस्कृत व्याख्या अत्यधिक प्रामाणिक तथा पाण्डित्यपूर्ण है। भारतीय विद्या प्रकाशन से प्रकाशित सर्वदर्शनसङ्ग्रह (मूलमात्र) भी प्रामाणिक तथा शुद्ध है। हिन्दी व्याख्याओं में डॉ. उमाशंकर शर्मा “ऋषि” की हिन्दी व्याख्या उपलब्ध है। इस व्याख्या में कहीं-कहीं प्रमादवश त्रुटियाँ रह गयी है। जैसे- पृष्ठ १८ पंक्ति ८ में लिखा है- “श्रावणत्व” (उपाधि) अपने साध्य (अनित्यत्व) को व्याप्त कर लेता है। यह बात कथमपि सिद्धान्तानुकूल नहीं है। आगे पंक्ति ११-१२ में टीकाकार ने स्वयं ही इसका खण्डन भी किया है। इसी प्रकार पृष्ठ १० पंक्ति १० तथा पृष्ठ १८ पंक्ति २ में भी कुछ प्रमाद हो गया है।
प्रस्तुत व्याख्या में यह प्रयास किया गया है कि यह एक सर्वागपूर्ण व्याख्या बन सके तथापि यदि प्रमादवश कोई कमी रह गयी हो तो सहृदय पाठक क्षमा करेंगे।
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