Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 4 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-चार काव्य खण्ड)
₹650.00
Author | Acharya Baldev Upadhyaya |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2nd edition, 2020 |
ISBN | - |
Pages | 632 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 3 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0004 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-चार काव्य खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 4)
नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा । कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा ।।
संस्कृत काव्यसंसार ऐसी शक्तिसम्पन्न कवित्वप्रतिभाओं से प्रतिष्ठित रहा है जिनके कारण काव्यशास्त्रमर्मज्ञों ने काव्य को ब्रह्मानन्दसहोदर कह कर अभिनन्दित किया है। भामह आदि काव्यसास्त्रियों ने शब्द और अर्थ के चारुत्वपूर्ण सहभाव को काव्य कह दृश्य तथा श्रव्य भेद से विभाजन कर श्रव्य काव्य के पुनः गद्य, पद्य तथा चम्पू भेद किये। उनमें भी पद्य काव्य पुनः महाकाव्य, खण्डकाव्य, गीतिकाव्य आदि अनेक विधाओं में लिखा जाता है। वास्तव में पद्य वर्ण और मात्रा के अनुशासन में यति, गति तथा लय की मर्यादा में स्थित होकर भी मसृण भावनाओं तथा कान्तासम्मित उपदेश शैली का सर्वोत्तम आदर्श है। संस्कृत काव्य परम्परा में अपौरुषेय वेदों का ऋषि ‘देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति’ कह कर उसे शाश्वत आनन्द का स्रोत कहता है तो लौकिक काव्य का प्रथम श्लोक ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः.. ..’ इत्यादि मानवीयसंवेदना तथा करुणा के उस चरम विन्दु के रूप में उभर कर आता है जो कवि, सहृदय तथा जगत् के तादात्म्य का हेतु है।
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की प्रकाशन योजना के अन्तर्गत प्रकाश्यमान ‘संस्कृत वाङ्मय का बृहत् इतिहास’ के प्रकाशित हो चुके १७ खण्डों में से चतुर्थ खण्ड ‘काव्य’ का पुनः प्रकाशन किया जा रहा है। यह काव्य के प्रति अध्येताओं की अभिरुचि, काव्य के महत्त्व तथा उपयोगिता के साथ ही इस खण्ड के गुणात्मक उत्कर्ष का परिचायक है। आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जैसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विद्वान तथा कविप्रवर ने इस खण्ड का सम्पादन कर इसे वह प्रतिष्ठा प्रदान की है कि इसके पुनः प्रकाशन की आवश्यकता हो गई है। विद्वद्वरेण्य आचार्य त्रिपाठी द्वारा लिखित लगभग ५५ पृष्ठों की भूमिका स्वयं में इस ग्रन्थ के सारसंक्षेप का प्रतिबिम्बन है जो बड़ी रोचक शैली में किया है।
१५ अध्यायों के विभाजित काव्यखण्ड में महाकाव्य के उद्भव के स्रोत ऋग्वेद से लेकर कालिदासपूर्व महाकाव्य परम्परा, कालिदास, अश्वघोष तथा बौद्धकाव्य परम्परा, शतककाव्यों की सुदीर्घपरम्परा, प्राकृत काव्य, शास्त्रकाव्य सन्धानकाव्य, चित्रकाव्य, यमककाव्य, चरितकाव्य, सन्देशकाव्य, स्तोत्रकाव्य गीतिकाव्य, रागकाव्य, सुभाषित आदि विविध काव्यशैलियों का ऐतिहासिक क्रमनिरूपण किया गया है। ज्ञातव्य है कि इस खण्ड में १८वीं शताब्दी तक का काव्येतिहास निबद्ध है। इसके पश्चात् संस्कृत काव्य का विवरण आधुनिक काव्य नामक खण्ड में है।
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