Shishupalvadham (शिशुपालवधम् प्रथम सर्गः)
₹144.00
Author | Tarinish Jha |
Publisher | Ramnarayanlal Vijaykumar |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 148 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0448 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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शिशुपालवधम् प्रथम सर्गः (Shishupalvadham) ‘शिशुपालवध’ में ये शास्त्रीय लक्षण पूर्णरूप से घटित होते हैं। इसका कथा- नक महाभारत के सभापर्व से लिया गया है तथा बीस सर्गों में कथा का निबन्धन हुआ है। इसके नायक भगवान् कृष्ण हैं। उनके जीवन की एक मुख्य घटना का चित्रण किया गया है। श्रीकृष्ण पूर्णतया धीरोदात्तादि गुणों से युक्त हैं। वे एक दैवीपुरुष हैं। प्रधान रस वीर है, शेष श्रृंगारादि उसके सहायक हैं। किसी भी सर्ग में ५० से कम तथा १५० से अधिक श्लोक नहीं हैं। प्रत्येक सर्ग में एक ही. छन्द का प्रयोग किया गया है। सर्गान्त में ही छन्द का परिवर्तन हुआ है। केवल चतुर्थ सर्ग ही अपवाद है जिसमें विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है। इसमें प्रत्येक सर्ग के अन्त में अग्रिम सर्ग के वर्ण्य विषय की सूचना दी गई है। शिशुपालवध के भ्रारंभ में वस्तुनिर्देश किया गया है, नमस्कार या श्राशीर्वाद नहीं। शिशुपाल का वध ही इसका फल है और उसका बीजरूप है भगवान् कृष्ण द्वारा नारद जी का दर्शन। मल्लिनाथ का निम्नलिखित श्लोक द्रष्टव्य है :-
नेतास्मिन् यदुनन्दनः स भगवान् वीरप्रधानो रसः ।
श्रृंगारादिभिरंगवान् विजयते पूर्णा पुनर्वर्णना ॥
इन्द्रप्रस्थगमाद्युपायविषयश्चैद्यावसादः फलं ।
धन्यो माघकविवर्य तु कृतिनः तत्सूक्तिसंसेवनात् ।।
तृतीय सर्ग में द्वारिकापुरी तथा समुद्र का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग में रैवतक पर्वत का सुन्दर चित्र उपस्थित किया गया है। पंचम सर्ग में श्रीकृष्ण के शिविर का वर्णन है। छठवें सर्ग से ग्यारहवें सर्ग तक विविध वर्णनों से भरे पड़े है। छठवें सर्ग में षट्ॠतुवर्णन, सातवें में वन विहार, आठवें में जलविहार, नवें में सूर्यास्तवर्णन है। दशम सर्ग में नायक नायिकाओं की रात्रिक्रीड़ा का वर्णन है। ग्यारहवें सर्ग में प्रभात की छटा का सुन्दर दृश्य दृष्टिगोचर होता है। द्वादश सर्ग में श्रीकृष्ण, की सेना का रैवतक पर्वत से इन्द्रप्रस्थ को ओर प्रस्थान तथः यमुना नदी का वर्णन है। त्रयोदश सर्ग में श्रीकृष्ण के श्रागमन से नगर में उत्सव होने श्रादि का वर्णन मिलता है। चतुर्दश सर्ग में महाराज युधिष्ठिर का भगवान् श्रीकृष्ण को प्रथमार्घ्य देना वर्णित है। अन्तिम तीन सर्ग शत्रु सेना का युद्ध-स्थल पर भ्राकर श्रीकृष्ण और शिशुपाल के भयंकर युद्ध के चित्र उपस्थित करते हैं।
इस प्रकार कथानक छोटा होते हुए भी यह महाकाव्य अधिकांश लम्बे वर्णनों से मरा हुआ है। कवि को कार्यान्विति का भी ध्यान है। वर्णनीय घटना के भाघार पर इस महाकाव्य का नाम शिशुपालवध है अथवा कवि के नाम पर माघकाव्य भी प्रसिद्ध है। अलंकारों के प्रयोग के अतिरिक्त चित्रबन्ध श्रादि के नियमों का मी इसमें पूर्णरूप से पालन किया गया है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है इस महाकाव्य में प्रकृतिर्णन के रूप में नगर, समुद्र, पर्वत, संध्या, प्रातः काल, षट्ऋतु, यात्रा, जलविहार, संग्राम आदि सभी का वर्णन है जो एक महाकाव्य के लिए श्रावश्यक है। कहीं-कहीं तो ये वर्णन अतिरंजित हो गये हैं।
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