Bala Maha Tripurasundari Pujan Evam Anushthan Vidhi (बालामहात्रिपुरसुन्दरी पूजन एवं अनुष्ठान विधिः)
₹25.00
Author | Dr. Devnarayan Sharma |
Publisher | Shri Kashi Vishwanath Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2024 |
ISBN | 978-93-92989-36-0 |
Pages | 24 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0455 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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बालामहात्रिपुरसुन्दरी पूजन एवं अनुष्ठान विधिः (Bala Tripurasundari Pujan Evam Anushthan Vidhi) शाक्त उपासनापद्धति में श्री विद्या-साधना को अत्यधिक महत्त्व प्राप्त है। यही ब्रह्माण्ड की निर्मात्री आदिशक्ति हैं। यही त्रिगुणात्मिका पराशक्ति सृष्टि का संचालन एवं संहार करती हैं। यही बुद्धि, विद्या, ज्ञान, कला की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनमें समस्त विद्याओं का स्वरूप विद्यमान है। प्रसन्न होने पर वे अज्ञान का नाश कर मूर्ख को भी पण्डित बना देती हैं। इसकी साधना से साधक को तेजस्विता के साथ ही विविध प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति तथा मनोकामनाओं की सद्यः पूर्ति भी होती है। अनेक भक्तों द्वारा राजराजेश्वरी पराम्बा बालात्रिपुरसुन्दरी की अनुष्ठान-विधि का आग्रह किया गया था। उनके आग्रह को शिरोधार्य करके भषाटीका सहित बालात्रिपुरसुन्दरी पूजन एवं अनुष्ठानविधि पुस्तक की रचना की गई है, ताकि इसके माध्यम से वे अपने अनुष्ठान को सम्यक्-रीति से सम्पन्न कर सकें।
ब्रह्माण्डपुराण, देवीपुराण, तन्त्रसार आदि अनेक ग्रन्थों में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत माता त्रिपुरसुन्दरी का उल्लेख प्राप्त है। काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातङ्गी तथा कमला ये दश महाविद्यायें हैं। इनमें तीसरे स्थान पर ‘षोडशी’ ही त्रिपुरसुन्दरी का स्वरूप है। ब्रह्माण्डपुराण में बाला त्रिपुरसुन्दरी का उल्लेख मिलता है। वहाँ ललितामाहात्म्य के वर्णन प्रसंग में अष्टवर्षीया बाला के रूप में इनका वर्णन किया गया है। इन्हें महात्रिपुरसुन्दरी, राजराजेश्वरी, मीनाक्षी, शताक्षी, बाला, ललिता आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है। सोलह कलाओं से युक्त होने तथा षोडशवर्षीया बाला रूप में होने के कारण इन्हें ‘षोडशी’ कहा जाता है। साधक नौ वर्ष से सोलह वर्ष तक की वयवाली जगदम्बा के स्वरूप का बालात्रिपुरसुन्दरी के रूप में आराधना करते हैं। ये तीनों गुणों से परे या त्रिगुणातीत होने के कारण त्रिपुरा हैं। अपने अनुपम सौन्दर्य से तीनों लोकों को अभिभूत करने के कारण इन्हें त्रिपुरसुन्दरी कहा गया है। राजाओं की राजसत्ता प्रदान करने वाले स्वरूप को माँ राजराजेश्वरी के रूप में जाना जाता है।
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