Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Shisupalvadh Mahakavyam (शिशुपालवध महाकाव्यम् प्रथमः सर्गः)

85.00

Author Dr. Acharya Dhurandhar Panday
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2022
ISBN 81-87415-30-4
Pages 94
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0226
Other Dispatched in 3 days

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

शिशुपालवध महाकाव्यम् प्रथमः सर्गः (Shisupalvadh Mahakavyam)

काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।

भारतीय संस्कृत साहित्य भारतीय समाज के आचार-विचारों का, उसकी उन्नति अवनति का तथा उसकी सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतनाओं का प्रतीक है। साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। समाज के उत्थान-पतन, वृद्धि-हास, समृद्धि-व्यवृद्धि तथा सामाजिक सामयिक उत्कर्षापकर्ष का पूर्ण एवं परिनिष्ठित ज्ञान हमें तद्देशीय एवं तत्कालीन साहित्य से होता है। संस्कृत का प्राचीन साहित्य इस बात का प्रमाण है कि भारतीय सामाजिक जीवन का चरम लक्ष्य सदा ही शाश्वत आनन्दोपलब्धि रहा है। अन्य देशों की भाँति वह सदा भौतिक उन्नति के क्षेत्र में जीवनोपयोगी साधनों को जुटाने में व्यस्त न रहकर शाश्वत आनन्द एवं शांति की साधना में निरत रहा है और विषम परिस्थितियों में भी अविचलभाव से जीवन के शश्वतमूल्यों की खोज में ही व्यस्त रहा है। त्रिकालाबाधित सत्य, शान्ति और शाश्वत आनन्द ही उसके जीवन के परम उपास्य रहे हैं, अतएव भारतीय समाज की इन मान्यताओं एवं आदर्शों के अनुसार भारतीय साहित्य का प्रमुख प्रतिपाद्य भी रस या आनन्द ही रहा है, शेष सभी साधन आनुषङ्गिक मात्र हैं जिन्हें हम संस्कृत साहित्य के सुविस्तृत प्राङ्गण में देख सकते हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shisupalvadh Mahakavyam (शिशुपालवध महाकाव्यम् प्रथमः सर्गः)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×