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Shri Durga Sarvasvam (श्रीदुर्गासर्वस्वम्) Code-618

340.00

Author Ashok Kumar Gaud
Publisher Rupesh Thakur Prasad Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2015
ISBN -
Pages 831
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0126
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Description

श्रीदुर्गासर्वस्वम् (Shri Durga Sarvasvam) अनन्तकोटि ब्रह्माण्डात्मक प्रपञ्च की अधिष्ठानभूता सच्चिदानन्दरूपा भगवती दुर्गा ही सम्पूर्ण विश्व को सत्ता, स्फूर्ति, सरसता प्रदान करती हैं। विश्वप्रपञ्च इन्हीं से उत्पन्न होता है और अन्त में इन्हीं में लीन हो जाता है। ये महाशक्ति ही सर्वकारणभूता प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सर्जन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं।

परा और अपरा दोनों प्रकृतियाँ इन्हीं की हैं। इनमें द्वैत, अद्वैत दोनों का समावेश है, ये ही वैष्णवों की श्रीनारायण और महालक्ष्मी, श्रीराम और सीता, श्रीकृष्ण और राधा, शैवों की श्रीशिव और उमा, गाणपत्यों की श्रीगणेश और ऋद्धि-सिद्धि, सौरों की श्रीसूर्य एवं उषा, ब्रह्मवादियों की शुद्धब्रह्म और ब्रह्मविद्या तथा शास्त्रों की महादेवी हैं। ये ही पञ्चमहाशक्ति, दसमहाविद्या और नौदुर्गा हैं। ये ही अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, कात्यायनी, ललिताम्बा हैं। ये ही शक्तिमान और शक्ति हैं। इतना ही नहीं पञ्चदेवों में इनका भी प्रमुख स्थान है। इनकी कृपा के अभाव में मनुष्य में नाना प्रकार की विपत्तियों से ग्रसित हो जाता है। मनुष्य, राक्षस और देवता- ये सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं। चारों वेद और उनके द्वारा जानने योग्य जितनी वस्तुएँ हैं, वे सब इन्हीं के स्वरूप हैं। जिस ग्रन्थ में दुर्गा के सम्पूर्ण विषयों का समावेश हो, उसे ‘श्रीदुर्गासर्वस्वम्‘ कहते हैं। मैंने अपने इस ग्रन्थ में तीन भागों का समावेश किया है और उन तीनों भागों में भगवती दुर्गा से सम्बन्धित सभी विषयों का वर्णन है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक के द्वारा कर्मकाण्डी और वैदिक विद्वान् विधिवत् भगवती दुर्गा के किसी भी अनुष्ठान को सम्पन्न करवा सकेंगे।

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