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Shri Karva Chauth Vrat Katha (श्री करवा चौथ व्रत कथा) – 363

18.00

Author -
Publisher Rupesh Thakur Prasad Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2009
ISBN 363-542-2392548
Pages 16
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0178
Other चार कहानियों वाली श्री करवा चौथ व्रत कथा

 

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Description

श्री करवा चौथ व्रत कथा (Shri Karva Chauth Vrat Katha) यह व्रत अति प्राचीन है। इसका प्रचलन महाभारत से भी पूर्व का है। यह व्रत सौभाग्यवती महिलाओं के लिए उत्तम माना गया है। सामान्य मान्यता के अनुसार सुहागिनें इस व्रत को अपने सुहाग (पति) की दीर्घायु के लिये रखती हैं। कहा जाता है इसे पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी ने भी किया था। समय यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष को चन्द्रोदय चतुर्थी में किया जाता है।

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को ‘करवा चौथ’ कहते हैं। सुहागवती स्त्रियों के लिए यह बहुत ही श्रेष्ठ व्रत है। स्त्रियाँ इस व्रत को पति के दीर्घजीवी होने के लिए करती हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ चावल पीसकर, दीवार पर करवा चौथ बनाती हैं, जिसे ‘वर’ कहते हैं। इस करवा चौथ में पति के अनेक रूप बनाये जाते हैं तथा सुहाग की वस्तुएँ, जैसे – चूड़ी, बिन्दी, बिछुआ, मेंहदी और महावर आदि के साथ-साथ दूध देने वाली गाय, करुआ बेचने वाली कुम्हारिन, महावर लगाने वाली नाइन, चूड़ी पहनाने वाली मनिहारिन, सात भाई और उनकी इकलौती बहन, सूर्य, चन्द्रमा, गौरा पार्वती आदि देवी-देवताओं के भी चित्र बनाये जाते हैं। सुहागिन स्त्रियों को इस दिन निर्जला व्रत रखना चाहिए। रात्रि को जब चन्द्रमा निकल आये, तब उसे अर्घ्य देकर भोजन करना चाहिए। पीली मिट्टी की गौरा बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए। (नोट :- यदि दीवार पर करवा चौथ बनाने में कोई असुविधा हो, तो करवा चौथ का चित्र बाजार से लाकर दीवार पर चिपकाया जा सकता है।)

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