Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-10%

Jivitputrika Vrat Katha (जीवित् पुत्रिका व्रत कथा) – 440

27.00

Author Pt. Ramatej Pandey
Publisher Rupesh Thakur Prasad Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2006
ISBN 440-542-2393546
Pages 16
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0177
Other Dispatched in 1-3 days

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

जीवित् पुत्रिका व्रत कथा (Jivitputrika Vrat Katha) कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से क्रोध में था। वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला। उसे लगा था कि ये पांडव हैं। लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे। इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली।

इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था। जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। यही आगे चलकर राज परीक्षित बने। तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जिउतिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।

कैसे शुरू हुआ जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत, इस संबंध में एक और कथा मिलती है और उस कथा के अनुसार गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गरुड़ का भोजन बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे। उन्होंने अपने साहस और परोपकार से शंखचूड़ नामक नाग का जीवन बचाया था। उनके इस कार्य से पक्षीराज गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए थे और नागों को अपना भोजन न बनाने का वचन दिया था। पक्षीराज गरुड़ ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था। इस तरह से जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा की थी। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत करने से पुत्र दीर्घायु, सुखी और निरोग रहते हैं। इस दिन गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Jivitputrika Vrat Katha (जीवित् पुत्रिका व्रत कथा) – 440”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×