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Shri Maheshwara Tantram (श्रीमाहेश्वरतन्त्रम्)

531.00

Author Dr. Sudhakar Malaviya
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Sanskrit Text and Hindi Translation
Edition 2023
ISBN 978-81-2180339-7
Pages 644
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0881
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Description

श्रीमाहेश्वरतन्त्रम् (Shri Maheshwara Tantram) तन्त्र शब्द एक विशेष शास्त्र या दार्शनिक सिद्धान्त का द्योतक समझा जाता है. जिसके अन्तर्गत विभिन्न देवी-देवताओं की रहस्यात्मक एवं अभिचार प्रधान पूजा पद्धति तथा तत्सम्बन्धी दार्शनिक मत एवं ग्रन्थों का बोध होता है। आधुनिक काल में वस्तुतः यही ‘तन्त्र शब्द’ का विशेष एवं लोकप्रिय प्रयोग साहित्य जगत् में दिखाई पड़ता है। इस रूप में तन्त्र एक अत्यन्त व्यापक शास्त्र के रूप में लिया जाता है। जिसमें शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य एवं सौर तथा बौद्ध, जैन आदि सभी सम्प्रदायों में स्वीकृत या प्रचलित विशेष तान्त्रिक पूजा पद्धति और विचारधारा का समावेश होता है।

इस प्रकार तन्त्र विद्या का अन्य अनेक शास्त्रों के दृष्टिकोणों से नितान्त स्वतन्त्र एक विशेष और रहस्यात्मक दृष्टिकोण हैं, जिसे संक्षिप्त परिभाषा के रूप में व्यक्त करना या समझ सकना सम्भव नहीं हैं। कुछ विद्वानों ने तन्त्र की परम्परा को अवैदिक माना है। कुछ आचार्य तन्त्र से दात्पर्य मात्र ‘शाक्त-पूजा पद्धति से लेते हैं। कुछ विद्वानों ने और आगे बढ़कर तन्त्र की उत्पत्ति अभारतीय धर्मों अथवा मान्यताओं से बताई। किन्तु इस प्रकार के विभिन्न दृष्टिकोण केवल सीमित रूप में ही उचित हो सकते हैं।

वस्तुतः तान्त्रिक मान्यता, विचारधारा और उसकी व्यावहारिक पूजा-पद्धति एक अत्यन्त प्राचीन सनातन परम्परा के रूप में भारतीय धर्म में दिखाई देती है। किन्तु उसका भारतीय विचार-धारा से कोई मूलभूत भेद नहीं है। वह उसी का एक अनिवार्य भाग है, क्योंकि समान रूप से शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य एवं सौर तथा बौद्ध, जैन, आदि सभी सम्प्रदायों में तन्त्र का समावेश और उन उन मत की एक विशेष दार्शनिक एवं व्यावहारिक तान्त्रिक पूजा-पद्धति के रूप में दिखाई देती है।

माहेश्वर तन्त्र श्रीशङ्करोक्त चौसठ तन्त्रों में परमार्थ का प्रकाशक है और यह जीवमात्र के लिए परमोपयोगी है। यह तथ्य स्वयं माहेश्वर तन्त्र के छब्बीसवें पटल में कहा गया है। क्योंकि समाधि की अवस्था में यह तन्त्र ईश्वर के द्वारा प्रोक्त है, अतः यह माहेश्वर तन्त्र के नाम से प्रख्यात हुआ।

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