Shri Manas Bhram Bhanjani (श्री मानस भ्रम भञ्जनी)
₹340.00
Author | Ramdev Prasad Soni |
Publisher | Aacharya Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2018 |
ISBN | 978-81-86100-27-1 |
Pages | 574 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0156 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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श्री मानस भ्रम भञ्जनी (Shri Manas Bhram Bhanjani)
“सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा । ।
वरदा वीणा विहारिणी सरस्वती के वरद पुत्र, कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने, प्रलयंकारी भगवान भूतनाथ, शशांक शेखर शिव द्वारा अनादिकाल में ही विरचित, मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन चरित्र की यशोगाथा को, भक्तशिरोमणि वीरवर श्री हनुमान जी के दिशा निर्देश में, अवधी भाषा में भाषाबद्ध करके पूर्णमर्यादित ढंग से विश्व विश्रुत अप्रतिम ग्रंथ ‘श्री रामचरित मानस’ की रचना किया। इस महानतम् ग्रंथ में चार वेद, छःशास्त्र, 18 पुराण, निगमागम, उपनिषद तथा अन्यान्य धर्मग्रंथों का समन्वय अलौकिक ढंग से करके जहाँ श्रीमद्गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी विद्वता का परिचय दिया वहीं इसमें डूबने-उतराने के लिए विद्वानों एवं ज्ञानियों को बाध्य भी कर दिया। अनेकानेक सनातनी धर्मग्रंथों एवं संतों के मत को अपने में संजोये हुए श्रीरामचरित मानस निश्चय ही अपने आप में भगवान राम का चरित्र रूपी महासिन्धु है जिसे पार पाना लौकिक जगत् के प्राणिमात्र के लिए दुष्कर ही नहीं असम्भव है। यही कारण है कि मानस के कुछ प्रसंगों को उनकी गुह्यता एवं गम्भीरता के कारण सामान्य पाठक समझ नहीं पाता और उसके मन में एक प्रकार का भ्रम, एक प्रकार की शंका का जन्म होता है। ऐसे पाठकों का भगवान श्री राम के पावन चरित्र एवं इस ग्रंथ पर विश्वास बना रहे, इसके लिए इन गुह्य एवं अलौकिक प्रसंगों को उजागर करते हुए उनके भ्रमों और शंकाओं का निराकरण करना अपरिहार्य हो जाता है।
यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि मूलरूप से उस जगन्नियन्ता पारब्रह्म परमेश्वर, भगवान श्री राम का पावन चरित्र क्या था? इसे बिना देखे कौन बता सकता है? अर्थात् कोई नहीं । इसी प्रकार किसी ग्रंथ अथवा साहित्य के मत पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता क्यों कि अनादि काल से प्रचलित धर्मग्रंथों के आधार पर ही विद्वत्समाज अपना मत व्यक्त करते हुए कुछ लिखने का साहस करता है। धर्मग्रंथों में वर्णित ‘ईश्वर के चरित्रों को स्वीकार करने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता श्रृद्धा, विश्वास एवं भक्ति की है। इसके बिना कोई भी ईश्वर के अलौकिक चरित्र को न तो समझ सकता है और न ही इसकी प्राप्ति उसे हो सकती है। गोस्वामी जी ने भी यही संदेश पाठकों को दिया है-
हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की।।
इसलिए ईश्वर के चरित्र एवं उसकी कथा में तर्क के लिए कोई स्थान नहीं है। फिर भी आपकी जिज्ञाशा एवं भ्रम को दूर करके ईश्वर एवं धर्मग्रंथों के प्रति आपकी आस्था को प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से ईश्वरीय प्रेरणा वश मेरा पदार्पण प्रयाग की पावन धरती पर श्री रमाकान्त त्रिपाठी के सौजन्य से हुआ और मेरे परम मित्र श्री करुणेशचन्द्र त्रिपाठी जी की प्रेरणा से लगभग ढ़ाई वर्षों के अथक प्रयास के बाद गंगा-यमुना और सरस्वती की इस पावन भूमि पर मेरे बड़े बहनोई श्री दुर्गाप्रसाद वर्मा एवं बड़ी बहन श्रीमती जगपता देवी के सानिध्य एवं क्षत्र छाया में इस ग्रन्थ ‘श्री मानस-भ्रम-भञ्जनी’ की रचना पूर्ण हुई। ग्रंथरचना के आदि प्रेरणा श्रोत हमारे बड़े ताऊ जी श्री कँधई लाल सर्राफ (बहराइच), मेरी धर्म-बहन कु० रमा श्रीवास्तवा प्रवक्ता, तारा महिला इण्टर कालेज, बहराइच, एवं बड़े मामा श्री शिवमूर्ति जी स्वर्णकार (नई दिल्ली) रहे जिन्होंने शिक्षाकाल से ही मेरे मनोबल एवं प्रोत्साहन को क्षीण नहीं होने दिया। इन बड़ों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा कर्तव्य है। ये सभी धर्मप्राण महानुभाव स्तुत्य है।
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