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Tuladan Paddhati (तुलादान पद्धतिः)

25.00

Author Dr. Devnarayan Sharma
Publisher Shri Kashi Vishwanath Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN 978-93-92989-61-2
Pages 40
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0453
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Description

तुलादान पद्धतिः (Tuladan Paddhati) कलिकाल में दान की बड़ी महिमा है। धर्म के चार स्तम्भ है- सत्य, तप, दया तथा दान। इन्हीं चारों स्तम्भों पर धर्म टिका रहता है। कालक्रम से सत्य तथा तप समाप्त होते गये। वर्तमान में दया तथा दान यही आत्मकल्याण तथा भगवत्प्राप्ति के साधन बने हुए हैं। विभिन्न पुराणों, स्मृतियों में दान की वस्तुओं एवं महत्ता का उल्लेख हुआ है। शास्त्रों में धन की तीन ही गति बताई गई है-

दानं भोगो नाशः तिस्रः गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीयागतिर्भवति ।।

दान से ही धन पवित्र होता है, इसीलिए हमारे ऋषियों ने अपने द्वारा अर्जित धन का दशांश दान करने की आज्ञा दी है। भगवद्‌गीता में दान के तीन प्रकार बताये गये हैं- सात्त्विक, राजस तथा तामस। उचित देश, काल तथा पात्र को दिया गया दान ही फलवान् होता है-

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ।। – भगवद्० ७/२०

शारीरिक आरोग्य, आयुष्यलाभ तथा निर्विघ्नसुख की अभिवृद्धि हेतु तुलादान करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। तुलादान यदि किसी मठ, मन्दिर, देवस्थान आदि में किया जा रहा है तो वहाँ उस देवालय में स्थापित विग्रह का ही प्रधान पूजन किया जायेगा। वहाँ कलशस्थापन आदि विशेष कर्मकाण्ड की आवश्यकता नहीं होती। जन्मकुण्डली में विभिन्नग्रहों द्वारा सूचित अनिष्टनिवृत्ति के लिए अनेक वस्तुओं का तुलादान किया जाता है, जैसे-लोहा, गेहूँ, उड़द, मसूर, चावल, नमक, दाल, घृत आदि। इस पुस्तक में शनिग्रहजन्य अरिष्टनिवृत्ति के लिए लोहा तथा उड़द युक्त तुलादान विधि का साङ्गोपाङ्ग वर्णन पौरोहित्य एवं कर्मकाण्डकुशल वित्रों की सहायता हेतु किया गया है। इसी विधि से अन्य ग्रहों के लिए तत्तद् वस्तुओं का भी तुलादान करना चाहिए। विश्वास है कि यह लघुकाय निर्मिति ब्राह्मणों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

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