Shringar Bhushanam (श्रृंगार भूषणम्)
₹130.00
Author | Dr. Shivram Sharma |
Publisher | Sharda Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2005 |
ISBN | - |
Pages | 112 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSS0100 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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श्रृंगार भूषणम् (Shringar Bhushanam) भाण-लक्षणानुसार श्रृंगारभूषण में धूर्त विटों तथा वेश्याओं के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक सामान्य है। विलास शेखर नामक चतुर पण्डित विटकनकमञ्जरी नामक वारांगना की पुत्री अंनगमञ्जरी के प्रथमार्तवमहोत्सव में सम्मिलित होने के लिये प्रातःकाल ही सजधज कर घर से निकलता है। वह कहता है-
प्रणयकलहं कोपोद्वेलं नियम्य विलासिनः।
प्रकृतिमधुरं नर्मालापं विधाय वधूजनैः ।।
दिवसमखिलं नीत्वा तां तां विलोक्य चमत्कृतां
मुदितहृदयः सायं गन्ता सखीमहमीक्षितुम् ।।
तदनुसार मार्ग में प्रेमियों की नाना प्रकार की प्रणायसमस्याओं का समाधान करता हुआ वह शाम को महोत्सव स्थल पर पहुँचता है। कहीं गन्धसार और मलयवती नामक नवसंयुक्त प्रेमियों को विलासदीक्षा देता है। कमलवती के दरिद्र, प्रेमी मलयगुप्त को उसकी धन लोभिनी माता ने निकाल बाहर कर माधवगुप्त को नियुक्त कर दिया है। समाधान विलास शेखर करता है। यज्ञाचार्य पं. माधव जी का पुत्र मन्दारक पिता द्वारा यज्ञ के लिये एकत्रित धन को चुराकर कामयज्ञ में दीक्षित हो गया है। उसके इस कृत्य की प्रशंसा करके उसे साधुवाद देता है। आगे विलासवती मिलती है। उसके यौवनारम्भ का भोग करके विलासशेखर महीनों से गायब है, वह उपालम्भ देती है-चाटुकारिता करके उसे मानता है।
आगे कामन्दक को नवोढा मन्दारिका के उपभोग का तरीका बता कर सामने गेंद खेलती हुयी इन्दुमती के साथ सरस वार्तालाप करता है। आगे वासन्तिका को माकन्द के साथ ही रत्यानन्द लेने की सलाह देकर कलकण्ठी और घनमित्र के झगड़े को सुलझाता है। गणदत्त की रंगशाला में नृत्तशिक्षा एवं बालचन्द्रिका का नृत्त देखकर मन्दारिका मकरन्द के दोला विहार एवं गान की प्रशंसा करने विलासवती-विटशेखर की द्यूत क्रीड़ा में निर्णायक की भूमिका अदा कर, चन्द्रवती के उद्यान में मध्याह्न व्यतीत करता है। नवमालिका को लेकर वृद्धा वेश्या वेत्रवती और माधवदास के कलह क़ो निवृत्त करके भेड़ों मुर्गों तथा मल्लों का संग्राम देखते हुये गन्तव्य पर पहुँचता है। आलंकारिक भाषा में निबद्ध श्रृंगारभूषण भाण सरस तथा मनोरञ्जक है। कवि ने बड़ी सूक्ष्मेक्षिका से वारांगनाओं तथा धूर्तविटों के चरित्रों को चित्रित किया है। श्रृंगार वर्णन में कवि ने पूर्ण दक्षता व्यक्त की है। प्रकृति वर्णन के साथ युद्ध वर्णन भी हृदयग्राही है। भाषा लालित्यपूर्ण तथा प्रसादमयी है। समग्ररूप में यह कहा जा सकता है कि यह भाण समस्त काव्य-तत्वों से परिपूर्ण काव्य है।
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