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Vastu Shanti Vidhi (वास्तुशान्ति विधि)

25.00

Author Acharya Pt. Shivdatt Mishr
Publisher Babu Thakur Prasad Book Seller
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2002
ISBN -
Pages 95
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0186
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Description

वास्तुशान्ति विधि (Vastu Shanti Vidhi) छोटे-छोटे कीट-पतङ्ग से लेकर मनुष्य पर्यन्त प्रत्येक प्राणी प्रकृति के नियमों से सृजित होकर दुःसह दुःख की निवृत्ति तथा आत्यन्तिक सुख-प्राप्ति के लिए निरन्तर चेष्टारत रहता है। मनुष्यादि जीव मात्र अपने-अपने अनुरूप अपना निवास-स्थान बनाकर सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। मनुष्य जाति सर्वश्रेष्ठ जाति है, अतएव इसका निवास स्थान भी सर्वश्रेष्ठ एवं सुरक्षित होना अनिवार्य है। अन्य प्राणी तो केवल अपने परिश्रम से ही अपना निवास स्थान घोंसले, मान, बिल इत्यादि तैयार कर लेते हैं, किन्तु मनुष्य को अपना गृह-निर्माण करने के लिए देश, काल और परिस्थिति पर पूर्ण ध्यान देते हुए तन, मन, धन, जन इत्यादि सभी को इतिकर्तव्यता का रूप देना पड़ता है। कुछ ऐसे पालतू जीव भी हैं, जिनके रहने के लिए मनुष्य को ही निवास स्थान बनाने पड़ते हैं। जैसे- हाथी, घोड़े, गाय, बैल, ऊँट, गधा, खच्चर इत्यादि।

मनुष्य के लिए भवन एक स्थायी सम्पत्ति समझी जाती है। इसलिए इसके तैयार हो जाने पर शीघ्र ही नष्ट न हो जाय, सूर्य- किरणों के अभाव में अत्यधिक सीड़न से सदैव स्वास्थ्य हानि न होवे इत्यादि बातों पर पूर्णतया ध्यान रखना अत्यावश्यक होता है। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने गृह-निर्माण विषय को धर्म का रूप देते हुए कहा है-

‘कोटिघ्नं तृणजे पुण्यं मृण्मये दशसङ्गणम् ।
ऐष्टिके शतकोटिध्नं शैलेऽनन्तं फलं भवेत् ।।
स्त्री-पुत्रादिक -भोगसौख्य-जननं धर्मार्थं कामप्रदं
जग्तूनामयनं सुखास्पदमिनं शीताम्बुधर्मापहम् ।
वापी-देवगृहादिपुण्यमखिलं गेहात् समुत्पद्यते
गेहं पूर्वमुशन्ति तेन बिबुधाः श्रीविश्वकर्मादयः ।।’

भूमि-परीक्षा करके वास्तुपूजन कर तह पर्यन्त अथवा पानी तक भूमि का शोधन करने के पश्चात् लग्न, चन्द्रमा, शकुन का बल देखकर गृहारम्भ करना चाहिए। इसमें गृह-प्रवेश-विधान, शान्तिपाठ, पञ्चगव्य-निर्माण-प्रकार, दिग्-रक्षण, गणेशाम्बिकापूजन, कलश स्थापनपूजन से लेकर पुण्याहवाचन, नवग्रह पूजनादि वास्तुपुरुष पूजन, क्षेत्रपाल बलिदान एवं विसर्जन पर्यन्त तथा परिशिष्ट में अन्यान्य गृह-निर्माण सम्बन्धी सभी विषय दिये गये हैं।

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