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Vishrut Charitam (विश्रुतचरितम्)

75.00

Author Dr. Pallavi Trivedi
Publisher Chaukhambha Krishnadas Academy
Language Hindi
Edition 2020
ISBN 978-81-218-0453-0
Pages 96
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0645
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Description

विश्रुतचरितम् (Vishrut Charitam) आचार्य दण्डी कृत दशकुमारचरित एक ऐसी रचना है जो अनेक सदियों से संस्कृत में गद्य सृजन के स्वरूप के लिए मानक बनी हुई है। इसका अपना साहित्यिक महत्व तो है ही, सांस्कृतिक, सामाजिक और नीतिमूलक महत्व भी रहा है। इसका ललित स्वरूप है और इसमें जिस तरह दस राजकुमारों को माध्यम बनाकर दण्डी ने राजपुत्रों के भ्रमण एवं पौरुषेय कार्यों को रेखांकित किया है, वह चमत्कृत करता है। इसमें अनेक पात्रों को चुना गया है और अनेक प्रसंगों को बुना गया है। व्यावहारिक धरातल पर दण्डी के पात्र जो कुछ करते हैं, उनके पीछे उनकी स्वाभाविक धूर्तता, तस्करी, साँच-झूठ, ईर्ष्या, अवसरानुकूल सुझ और पाखण्ड आदि परिलक्षित होते हैं। यह कृति उस काल की सामाजिक छवियाँ प्रकट करती हैं जबकि हिंसा का आश्रय, कपटाचरण, परस्त्रीगमन जैसी बुराइयाँ थीं और राजपरिवारों के इर्द-गिर्द हृदयहीन वेश्याओं की चालें विद्यमान थीं। दण्डी ने कुट्टनियों के मनोविज्ञान का भी चित्रण किया है।

संस्कृत साहित्य में दण्डी के प्रति आदरभरी अनेक सूक्तियाँ मिलती हैं, क्योंकि उनके ग्रन्थों के अध्ययन के अभाव में कोई रचनाकार अपनी शैली के स्वरूप, विषय के प्रतिपादन तथा विस्तार में असमर्थ होता था। दशकुमार चरित अकेले ऐसा ग्रन्थ है, जिसके अध्ययन से अनेक रचनाकारों को कृतियों के प्रणयन की प्रेरणा मिली है। दशकुमार चरित के अलग-अलग पाठों के परीक्षण से यह ज्ञात होता है कि दण्डी ने इस ग्रन्थ की रचना के लिए तीन खण्डों की योजना रखी थी भूमिका, मूलग्रन्थ और पूरक अंश जिनमें क्रमश: 5, 8 तथा प्रथम उच्छास आते हैं। यह भी सच है कि तीनों ही खण्डों में परस्पर सम्बन्ध नहीं लगता। भूमिका भाग, जो कि पाँचवाँ उच्छास है, पूर्वपीठिका के रूप में जाना जाता है जबकि पूरक अंश ग्रन्थ की उत्तर पीठिका के रूप में मान्य है। इनके बीच ग्रन्थित मूल ग्रन्थ दशकुमारचरितम् के अन्वर्थक नाम से बहुश्रुत है। बलदेवप्रसाद उपाध्याय का मत है कि मूलग्रन्थ और पूर्वपीठिका के कथानकों में अवान्तर घटना-वैषम्य है। मूलग्रन्थ के आठ उच्छासों में केवल आठ कुमारों के विचित्र चरित्र का उपन्यास है, परन्तु नाम की सार्थकता सिद्ध करने के विचार से पूर्वपीठिका में अन्य दो कुमारों का चरित जोड़ दिया गया है और अधूरे ग्रन्थ को पूर्णता की कोटि पर पहुँचाने के लिए अन्त में उत्तर पीठिका भी जोड़ दी गई है। इस प्रकार आरम्भ में पूर्वपीठिका से अन्त में उत्तरपीठिका से सम्युटित समग्र ग्रन्थ ही आज दशकुमार चरित के नाम से प्रख्यात है।

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