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Yoga Tarawali (योगतारावली)

50.00

Author Ram Sankar Bhattacharya
Publisher Bharatiya Vidya Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1987
ISBN 81-217-0035-3
Pages 36
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0431
Other OOld And Rare Book

 

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Description

योगतारावली (Yoga Tarawali) राजयोग का प्रतिपादक श्लोकबद्ध ‘योगतारावली’ नामक ग्रन्य योगाभ्यासियों में अत्यन्त प्रसिद्ध रहा है। इस ग्रन्थ को शंकराचार्य द्वारा विरचित माना जाता है। यही कारण है कि विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित शाङ्करग्रन्यावलियों में यह प्रत्य अवश्य संयोजित रहता है। पृथक् रूप से इस ग्रन्थ का प्रकाशन कदाचित् ही देखा जाता है।

यह खेद का विषय है कि प्रस्तुत ग्रन्य में वर्णित विषय यद्यपि अत्यन्त उच्चकोटि का है तथा इसको भाषा भी कहीं-कहीं व्याख्या की अपेक्षा रखती है. तथापि इसकी कोई प्राचीन संस्कृत टीका प्रचलित नहीं है, जबकि शंकराचार्यकृत दार्शनिक विचार- बहुल दक्षिणामूर्ति-स्तोत्र की टोका उनके शिष्य सुरेश्वराचार्यं ने, वेदान्तकेशरी की टोका आनन्दगिरि ने तथा निर्वाणदशक की टोका मधुसूदन सरस्वती ने लिखो है। टीका न रहने के कारण इस ग्रन्थ के कुछ वाक्यों का तात्पर्य समझने में कठिनता होती है। ग्रन्थगत श्लोकों का मुद्रित पाठ भी सर्वत्र शुद्ध प्रतोत नहीं होता। विभिन्न संस्करणों में श्लोकों के अनेक पाठान्तर दृष्ट होते हैं। अतः प्राचीन हस्त- लेखों के आधार पर इस ग्रन्थ का एक शुद्धपाठयुत संस्करण प्रस्तुत करना आवश्यक प्रतीत होता है। शुद्ध पाठों के विना अर्थनिर्धारण करना सुकर नहीं है।

इस ग्रन्थ के जो एक-दो व्याख्या-ग्रन्थ (हिन्दी बंगला में) प्रचलित हैं, वे बहुत ही साधारण कोटि के हैं। इनमें न पाठों पर उचित विचार किया गया है और न शब्दों के विवक्षित तात्पर्य के निर्धारण के लिए उचित प्रयास किया गया है। प्रस्तुत व्याख्या में योगतारावली में प्रयुक्त शब्दों के विक्षित अर्थों का निर्धारण योगग्रन्यों के आधार पर करने की चेष्टा की गई है तथा कौन पाठ संगत है, इस पर भी विचार किया गया है। हम समझते हैं कि हठयोगप्रदीपिका की ज्योत्स्नाटीका की तरह एक टीका इस ग्रन्थ के लिए भी आवश्यक है। कोई अभ्यासशील विद्वान् योगी यदि इस कार्य को करें तो हम सब उपकृत होंगे।

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