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Srimad Bhagavad Gita (श्रीमदभगवतगीता अध्याय 16,17,18)

85.00

Author Dr. Madhaw Janardan Ratate
Publisher Bharatiya Vidya Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2004
ISBN 978-81-217-0271-3
Pages 154
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0432
Other श्रीमदभगवतगीता अध्याय 16,17,18,अन्वय, शब्दार्थ, अनुवाद, व्याख्या एवं दीर्घउत्तरीय, लघुउत्तरीय तथा बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तरी सहित

 

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Description

श्रीमदभगवतगीता (Srimad Bhagavad Gita)

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्यात् विनिःसुता।।

इस श्लोक में यह बतलाया गया है कि गीता स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के मुखकमल से निःसृत होने के कारण अत्यन्त महत्वशाली है। जिसे गाया जा सके, वह गीता है। वैसे तो गीता अनेक प्रकार की होती है, किन्तु उपदेशप्रद शास्त्र को गीता कहा जाता है। अनेक महापुरुषों के द्वारा प्रदत्त उपदेश गीता कहलाते हैं। जैसे- अष्टावक्रगीता, भिक्षुगीता आदि। भगवान् श्रीकृष्ण ने युद्धभूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को जो उपदेश दिया, वह श्रीमद्भगवद्‌गीता नाम से प्रसिद्ध है। महाभारत के भीष्मपर्व में १८ अध्यायों का संग्रह है, जो श्रीमद्भगवद्गीता नाम से प्रसिद्ध है। गीता में समस्त बेदी, उपनिषदो तथा पुराणो का सार भरा होने केकारण वेदान्त की प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, उपनिषद् तथा श्रीमद्भगवद्गीता) में गीता को स्थान दिया गया है-

सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।

पार्यो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।

गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा भक्तियोग का उपदेश दिया है। ज्ञान, कर्म तथा भक्ति के अधिकारी तीन प्रकार के साधक होते हैं। श्रीमद्भागवत में बतलाया गया है-

निर्विष्णानां ज्ञानयोगो न्यासिनामिह कर्मसु। तेष्वनिर्विष्णचित्तानां कर्मयोगस्तु कामिनाम्।।

यदृच्छया मत्कथादौ जातश्रद्धस्तु यः पुमान्। न निर्विष्णो नातिसक्तो भक्तियोगोऽस्य सिद्धिः ।। – श्रीम‌द्भागवत, ११.२०.७-८

गीता में इन विविध योगों के अतिरिक्त विभूतियोग, गुणत्रय विभागयोग, आत्मा की अमरता आदि विषयों का विशद विवेचन तो है ही, साथ ही साथ गीता के ११वें अध्याय में अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने जो विराट् स्वरूप दर्शाया है, उसका वर्णन भी गीता में विस्तृत रूप से किया गया है।

गीता के वास्तविक अर्थ को शास्त्र चक्षु के द्वारा ही समझा जा सकता है, क्योंकि गीता में समस्त शास्त्रों का तात्पर्यार्थ भरा हुआ है। गीता मनुष्य के पारलौकिक जीवन को तो सुधारती है ही, साथ ही व्यावहारिक जीवन में भी पग-पग पर गीता उपयोगी है। गीता की व्यवहारिक उपयोगिता इसी बात से सुस्पष्ट है कि प्रबन्धशास्र, तकनीकि आदि आधुनिक विषयों में भी वर्तमान समय में गीता का अध्यापन चल रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ में गीता के १६,१७ तथा १८ वें अध्याय का वर्णन किया गया है।

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