Karma Vipak Samhita (कर्मविपाक संहिता)
₹212.00
Author | Pt. Shambhu Datta Tripathi |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2008 |
ISBN | 218-542-2392549 |
Pages | 287 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0145 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कर्मविपाक संहिता (Karma Vipak Samhita) धर्म प्रधान देश में प्रायः सभी प्राणी इस निर्णय को मानते हैं कि पूर्व जन्मार्जित कर्म के प्रभाव से ही यह जीव अनेकानेक योनियों में भटकता हुआ दुर्लभ मनुष्य योनि में जन्म लेता है। किन्तु इस मनुष्य योनि में भी जन्म पाकर अधिकतर जीव जन्मान्तरीय अन्य योनियों के जन्मोत्पन्न दुःखों का अनुभव करता है। ऐसा महर्षियों का कहना है-
“अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाऽशुभम्” तथा “नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्प-कोटि-शतैरपि”
इसका कारण यह है कि पूर्वजन्मार्जित कर्म (पाप या पुण्य) को ही माना है। यों तो इस प्रकार के कर्मों का निर्णय तथा प्रतिकार अन्य ग्रन्थों में भी पाया जाता है, तथापि उनमें कर्मविपाक संहिता नामक यह ग्रन्थ अपना सबसे ऊँचा स्थान रखता है। यद्यपि इस ग्रन्थ की अनेक टीकायें हैं, तथापि सर्वसाधारण के ज्ञान के लिये यह आवश्यक प्रतीत होता था कि आधुनिक शैली के अनुसार एक सरल भाषा-टीका भी इस ग्रन्थ की हो, यह ध्यान में रखते हुए मैंने सरल भाषा-टीका में इस ग्रन्थ के मूल श्लोकों का अनुवाद किया है और यह विषय गहन होते हुए भी मैंने भाषानुवाद करने का दुःसाहस किया है। यदि भ्रमवश कहीं पर त्रुटि रह गई हो तो विज्ञजन क्षमा करेंगे।
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