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Rudrayamalam Set Of 2 Vols. (रुद्रायामलम् 2 भागो में)

1,657.00

Author S. N. Khandelwal
Publisher Chaukhambha Orientalia
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2019
ISBN -
Pages 1156
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CO0404
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Description

रुद्रायामलम् 2 भागो में (Rudrayamalam Set Of 2 Vols.) रुद्रयामल की विशेषता यह है कि इसमें योग तथा तन्त्र की समन्वयात्मक धारा का संकेत मिलता है। मन्त्र से हठयोग साधना हेतु इसमें अमरापंचक साधना का वर्णन किया गया है। नेति, नेऊली, धौति, क्षालनादि हठयोग प्रक्रिया के पूर्व उन उन हठयोग के लिए तद्नुकूल मन्त्र आवश्यक है। इससे वह दुष्कर साधन भी साधक के लिए सुकर हो जाता है। इस यामल में षट्चक्र तथा कुण्डलिनी का महत्त्व पग-पग पर दृष्टिगोचर होता है। यहाँ कुण्डलिनी तथा षट्चक्र का मात्र योगात्मक ही नहीं मन्त्रात्मक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं। मन्त्रसमन्वित प्राण साधना से षटचक्र भेदन तथा कुण्डलिनी जागरण सम्भव हो जाता है। उसमें बाधा नहीं रह जाती।

इस यामल का लक्ष्य रहा है पशुभाव से व्यक्ति को क्रमशः उन्नीत करते हुए उसे वीरभाव में तदनन्तर दिव्यभाव में उपनीत कराना है। इसी उद्देश्य को लेकर इसमें अनेक प्रकार की साधना का षट्‌कर्म साधनों का एवं बाह्य के साथ-साथ आन्तरिक उपासना का भी आलौकिक वर्णन मिलता है। इनके विषय में लिखा जाये। तब सहस्रों पृष्ठ का महाग्रन्थ हो जायेगा। परन्तु यहाँ तो केवल इस अनुवाद द्वारा मात्र अध्येतागण को सन्देश देना ही उचित समझता हूँ। जिससे इस ग्रन्थ के अनुशीलन तथा अध्ययन के प्रति रुचि का जागरण हो सके।

सर्वान्त में यह कहना है कि यह ग्रन्थ तथा इसमें वर्णित प्रक्रिया पूर्णतः गुरु गम्य है। ग्रन्थ पढ़कर केवल कवच तथा स्तोत्र एवं सहस्रनाम पाठ तक ही अध्येता को सीमित रहना चाहिए। सिद्ध गुरु का निर्देश तथा साथ मिले बिना इसकी किसी भी साधन प्रक्रिया का अनुष्ठान करना हानिकारक होगा। साथ ही अनेक विधि राष्ट्र के कानून (शव साधन आदि) के अनुकूल नहीं है। अनेक प्रकार के प्रशु प्रभृति कानून से अवध्य है इत्यादि। जो युगानुरुप तथा कानून के अनुरूप नहीं है। उसका अनुष्ठान न करना ही श्रेयस्कर है। अनेक द्रव्य जड़ी वनस्पति आदि का नाम ही शेष रह गया है। ऐसी अनेक समस्या साधक तथा अनुष्ठान कर्त्ता के सामने उपस्थित होती है। अतः इस क्षेत्र में केवल नामधारी गुरु नहीं अपितु यथार्थ में सिद्ध तथा साक्षात्कार सम्पन्न गुरु के दिशानिर्देश में एवं देश के कानून का पालन करते हुए ही अनुष्ठनादि करना चाहिए। यही कहना है।

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